Sunday, August 16, 2015

भारतीय मुसलमानों के पास अपने काम की योजना होनी चाहिए: के. एम. शरीफ

पापुलर फ्र्रण्ट आफ इणिडया के चेयरमैन के. एम. शरीफ से एक साक्षात्कार

प्रश्न : पापुलर फ्र्रण्ट आफ इणिडया के चेयरमैन की हैसियत से यह आप का दूसरा साल है। आप कर्नाटक के रहने वाले हैं और आप के चुने गए नये सचिव तमिलनाडु के रहने वाले हैं। यह इस बात का इशारा है कि संगठन का नेतृत्व केरल के बाहर जा रहा है ? इसके साथ साथ राष्ट्रीय कार्यकारिणी में इन तीन दक्षिणी राज्यों के बाहर का कोर्इ सदस्य नहीं पाया जाता। पापुलर फ्र्रण्ट आफ इणिडया को राष्ट्र व्यापी प्रसार और प्रतिनिधित्व वाला संगठन बनने में और कितने समय की आवश्यकता होगी ?

उत्तर : हमारा संगठन ऐसा संगठन है जो आन्तरिक लोकतंत्र पर आधारित है। हमारी राष्ट्रीय कार्यकारिणी देश के विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों के द्वारा चुनी जाती है। एक चुनावी प्रक्रिया के द्वारा 15 सदस्य चुने जाते हैं यह चुनाव प्रत्येक दो साल पर लोकतांत्रिक और पारदर्शी ढंग से सम्पन्न कराया जाता है। योग्य सदस्यों का चुनाव करते समय विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियो को पर्याप्त महत्व दिया जाता है। पिछले चुनाव में केवल दक्षिणी राज्यों से लोग नहीं चुने गये थे बलिक मणीपूर से भी चुने गये थे जो उत्तर पूर्व का राज्य है। हमारे राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मणीपूर के रहने वाले हैं और यह पद पिछले सत्र में पशिचम बंगाल के सदस्य को दिया गया था। वास्तव में पापुलर फ्र्रण्ट को राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व वाला संगठन बनना है और वास्तव में यह इस दिशा में आगे बढ़ रहा है।

प्रश्न : यह सही है कि आपके राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मणीपुर के हैं लेकिन यह केवल नाम मात्र की मौजूदगी है। दक्षिण भारत अब भी प्रगति में बहुत आगे है। उत्तर की तरफ कदम बढ़ाए हुए आपको 8 वर्ष व्यतीत हो चुक हैें, क्या उत्तर और दक्षिण में जिस भेद भाव की बात अधिकतर की जाती है, वह वास्तविकता है ? क्या आप नये क्षेत्रों में आशा के अनुसार आगे बढ़ सके हैं। क्या वहाँ अब भी न पार पायी जा सकने वाली रुकावटें मौजूद हैं?

उत्तर : यह सही है कि पापुलर फ्र्रण्ट आफ इणिडया की ताकत दक्षिणी भारत में अधिक है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि हम उत्तर भारत में कमज़ोर हैं। असम, पशिचम बंगाल, बिहार, आन्ध्र प्रदेश और मणीपुर और अन्य दूसरे राज्यों में अब हमारी मौजूदगी नाम मात्र की ही नहीं है। अब हम उत्तर भारत में इतना आगे बढ़ चुके हैं कि हमारे सदस्य संगठन का जो भी फैसला लेते है उसे पूरे राज्य में लागू कर लेते हैं। इस सत्र में हमने बिहार और झारखण्ड में अपने संगठन की घोषणा की है और वहाँ राज्य इकाइयों का गठन किया है। अब हम उत्तर भारत में भी पर्याप्त रुप से मज़बूत हैं यहाँ तक कि हम जो कार्यक्रम और विरोध प्रदर्शन दक्षिण भारत में करते हैं उन्हें हम उत्तरी राज्यों में भी करने की क्षमता रखते हैं। हमारे पास इस काम के लिए उत्तर भारत में पर्याप्त सदस्य संख्या मौजूद है। हमारा एक ही भारत है और इस भारत में उत्तर और दक्षिण का कोर्इ भेद भाव नहीं है। यधपि समस्याओं की शाखाओं में कुछ उतार चढ़ाव होते हैं लेकिन भारतीय मुसलमानों की मौलिक समस्याएं एक जैसी हैं। इन सब के समाधान के लिए सशकितकरण की आवश्यकता है। यह सही है कि उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों में जहाँ बड़ी मुसिलम आबादी है वह दक्षिणी राज्यों की तुलना में सभी मामलों में अधिक पिछड़ा है। सामाजिक सशकितकरण उत्तर भारत के मुसलमानों के लिए एक नया प्रयोग है। इस सम्बन्ध में उनको प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है। राजनैतिक सशकितकरण के लिए इन्हें तैयार करके आगे बढ़ाना है। इसमें समय लगेगा।

प्रश्न : पिछले दिनों में आयोजित क्षेत्रिय स्तर की जन सभाओं अर्थात एरिया कांफ्रेन्सों को ग्राम्य उत्सव के रुप में काफी लोकप्रियता प्राप्त हुर्इ। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि संगठन अब सामाजिक सेवा की गतिविधियों को अधिक महत्व दे रहा है। क्या यह संगठन के प्रारमिभक उíेश्य से खिलाफ नहीं है, जो फासीवाद को रोकने और मानवाधिकारों की सुरक्षा पर केनिद्रत था ?

उत्तर : हम आज भी एक जन प्रतिरोध आन्दोलन हैं, फासीवाद और उपनिवेशवाद के विरुद्ध हमारा संघर्ष सदैव जारी रहेगा, हम समझौता किए बिना इनका विरोध जारी रखेंगें। हम लगातार हिन्दुत्व की उन ताकतों की धोखे बाजि़यों का पर्दाफाश करते रहेंगे, जो केवल राजनैतिक हितों के लिए देश के मिले जुले माहौल को नष्ट करती हैं। हम हमेशा इनकी धमकाने वाली चालों के विरुद्ध जनता के बीच विरोध प्रदर्शन करते रहेंगे। हम इस उíेश्य के लिए समान विचार धारा वाले समूहों के साथ मंचों पर भागीदारी करते रहेंगे। विरोध प्रदर्शन, जन सभाएं, सेमीनार, प्रेस विज्ञपित और पोस्टर अभियान ये सभी चीज़े हमारे कार्यक्रम का अंग हैं।
इसके साथ साथ हम मुसलमानों और अन्य पिछड़े वर्गों के सशकितकरण की गतिविधियों को जारी रखे हुए हैं। हमारा एजेण्डा प्रगति और विकास के साथ फैलता जा रहा है, और जनता के मौलिक अधिकारों के बढ़ते हुए हनन के कारण हमारे कत्र्तव्य और भी बढ़ गये हैं। गाँव के स्तर पर जन सभाएं पूरे देश में सफलता पूर्वक आयोजित हुर्इं और इससे हमें जनता तक पहुँचने और उनके लिए काम करने में हमारा भरोसा बढ़ा है।
प्रश्न : ''उज्जवल भविष्य के लिए एकता यह क्षेत्रीय कांफ्रेंसों का नारा था। बहुत से लोग इस विचार धारा का समर्थन करते हैं कि भविष्य के लिए दीर्घ कालिन योजना होनी चाहिए। क्या पापुलर फ्र्रण्ट आफ इणिडया ने इस सम्बन्ध में कोर्इ गंभीर कदम उठाया है?

उत्तर : हम स्वतन्त्रता के 67 वर्ष व्यतीत कर चुके हैं, अब तक मुसिलम समुदाय के स्वयं भू नेता अपनी विफलता और पतन को ही सिद्ध करते रहे हैं। वह हर समय समस्याओं पर विलाप करने को पर्याप्त समझते हैं, जिससे समाज में बहुत कम बदलाव आता है। जो लोग भारतीय मुसलमानों के नेतृत्व का दावा करते हैं वह ज़्ामीनी स्तर पर जनता से सम्पर्क कम रहते हैं। उनको भविष्य की कोर्इ विशेष चिन्ता नहीं है। और न तो इनको विकास की योजनाओं की आवश्यकता महसूस होती है। देश का बुद्धिजीवी वर्ग किताबें और लेख लिखता है, सेमीनार आयोजित करता है और आँकड़े प्रस्तुत करता है। कोर्इ भी बुद्धिजीवी यह तय करने की योग्यता नहीं रखता कि भारतीय मुसलमानों के भविष्य की कार्य योजना क्या हो। कम से कम अब हमें इस योग्य होना चाहिए कि मुसलमानों को सशकितकरण के उíेश्य की तरफ ले जा सकें। हमारे पास दीर्घ कालिन विचार धारा, मिशन और काम का एजेण्डा होना चाहिए। पापुलर फ्र्रण्ट आफ इणिडया इस दिशा में चिन्तन कर रहा है और इसी दिशा में आगे बढ़ रहा है। भारत भविष्य में कैसा होना चाहिए ? भविष्य के भारत में भारतीय मुसलमानों और पिछड़े वर्गों की दशा क्या होनी चाहिए ? हमने पूरे देश में यात्रा करके यह बहस शुरु की है और इस सम्बन्ध में विभिन्न लोगों से विचार विमर्श भी किया है।

प्रश्न : पापुलर फ्र्रण्ट को अन्य संगठनों की तुलना में आलोचना का निशाना अधिक क्यों बनाया जाता है ? सरकारें पापुलर फ्र्रण्ट की राह में रुकावटें पैदा करतीं है, राजनीतिक दल पापुलर फ्र्रण्ट से दूरी बनाए रखते हैं, मीडिया इसके संबंध में गढ़े हुए समाचार प्रकाशित करता है। केवल यही नहीं, कुछ मुसिलम समूह अब भी पापुलर फ्र्रण्ट का विरोध जारी रखे हुए हैं ? आप इस सिथति पर किस तरह नियन्त्रण प्राप्त करेंगे ?

उत्तर : एक ऐसे संगठन की हैसियत से जो लगातार सच्चार्इ और न्याय के लिए संघर्ष कर रहा है, स्वाभाविक रुप से हमारे दुश्मन हैं। हमारा संगठन ऐसा है जो बहुत ताकतवर है, इसका कैडर पर आधारित संगठन तन्त्र है और लगातार एक जगह से दूसरी जगह तक फैलता जा रहा है। इसी लिए हमारे ऊपर नज़र रखी जा रही है और प्रतिक्रियावादी ताकतें कभी कभी हमें धमकी भी देती हैं। हम मुसलमानों और देश के अन्य वंचित वगोर्ं में संगठन पैदा करके, उनका सशकितकरण करके, उनके अधिकारों की लडार्इ लड़ कर और राजनीतिक रुप से उनको सशक्त बना कर संगठित कर रहे हैं और प्रगति के रास्ते पर आगे बढ़ रहे है। हमारा यही काम उन लोगों को भड़का रहा है जिनके पास गुप्त एजेंडा है। इसका कारण यह बिल्कुल नहीं है कि हमनें पिछले दो दशकों के इतिहास में कभी कोर्इ ऐसा काम किया है जो देश विरोधी, लोकतंत्र विरोधी अथवा संविधान विरोधी रहा हो। ऐसे सभी तत्व जो हमें आलोचना का निशाना बनाते हैं वह इस सच्चार्इ को बहुत अच्छी तरह जानते हैं। हमारी गतिविधियाँ पारदर्शी हैं। साम्प्रदायिक और फासीवादी समूह और कुछ अन्य एजेंसियाँ मीडिया को हमारे विरुद्ध प्रयोग कर रही हैं। हमारे पास इसके अतिरिक्त कोर्इ विकल्प नहीं है कि हम सच्चार्इ को मज़बूती से थामें रहें। इन षडयन्त्रकारी हरकतों पर नियन्त्रण पाने का केवल एक रास्ता यह है कि सच्चार्इ को समझाया जाए। हमारे पास कोर्इ अन्य विकल्प नहीं है।

प्रश्न : पिछले दिनों एक नर्इ रिपोर्ट यह सामने आर्इ है कि पापुलर फ्र्रण्ट पर प्रतिबंध लगने जा रहा है। ऐसी रिपोर्टें समय समय पर क्यों लगातार आती रहती हैं ? क्या आपको प्रतिबंध का ऐसा कोर्इ ख़तरा है ?

उत्तर : पापुलर फ्र्रण्ट एक सामाजिक आंदोलन है जो भारत में संविधान के अनुसार काम कर रहा है। मीडिया पहले ही कर्इ बार पापुलर फ्र्रण्ट पर प्रतिबंध लगा चुका है। लेकिन मुसलमानों और पिछड़े वगोर्ं के सशकितकरण के लिए हमारी दो दशकों से जारी गतिविधियाँ अभी तक नहीं रुकी हैं। हमारी गतिविधियों से ऐसा कोर्इ मामूली सबूत भी नहीं मिल सका है जो हमारे संगठन पर प्रतिबंध का कारण बन सके। इसके साथ साथ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ समेत समाज को बाटने वाली शकितयाँ यहाँ सक्रिय हैं। हम लगातार इन ताकतों को बे नकाब कर रहे हैं लेकिन बात केवल इतनी नहीं है कि सरकार इन पर नियंत्रण नहीं कर रही है बलिक स्वयं सरकार इनके नियनत्रण में है। यह बात स्पष्ट है कि जो लोग स्वयं सरकार पर नियंत्रण रखते हैं वह अपने विरुद्ध उठने वाली आवाज़ों को प्रतिबंधित करने के लिए किसी विशेष सबूत के मुहताज नहीं हैं। लेकिन हमारा विश्वास है कि हमारी लोकतांत्रिक अन्तरात्मा इस तरह के किसी कानून विरुद्ध और अत्याचार पूर्ण कदम को विफल कर देगी।

प्रश्न : आप के संगठन को कुछ आतंकवादी घटनाओं जैसे बम धमाकों से जोड़ने का प्रयास किया गया। पिछले दिनों आप को एल. टी टी. र्इ से लेकर अल कायदा तक के समूहों से जोड़ते हुए समाचार प्रकाशित किए गए। अब आप को मीडिया के कुछ वगोर्ं में इस्लामी स्टेट से जोड़ने की बारी आ गर्इ है। क्या हिंसा कि ऐसी गतिविधियाँ जिनके लिए कुछ मुसिलम नाम के समूहों पर आरोप लगाया जाता है ? क्या इन हरकतों को सच्चार्इ पर आधारित कहा जा सकता है ?

उत्तर : हमारा पक्का विश्वास है कि मुसलमानों और अन्य पिछड़े बगोर्ं के सशकितकरण का उíेश्य बम धमाकों या हिंसा से प्राप्त नहीं हो सकता है। भारत की समस्याएं, परिसिथतियाँ और चुनौतियाँ अलग हैं। हम जिन समस्याओं का समाधान खोज रहे हैं वह निरक्षरता, निर्धनता, असुरक्षा, अन्याय, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और हिंदुत्व फासीवाद हैं। भारतीय समाज या मुसलमानों की समस्याएँ सामाजिक स्थलों जैसे बाज़ारों और रेल गाडि़यों को उड़ाने और निर्दोष जनता की हत्या करने से नहीं हल हो सकतीं। हम ऐसी गतिविधियों के विरुद्ध लगातार सुचित करते रहते हैं। हम समस्याओं के समाधान का जो प्रस्ताव रखते हैं वह ज़मीनी स्तर पर जन समर्थन जुटाना, उनको संगठित करना और उनको आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक रुप से सशकितकरण के लिए तैयार करना है। जो तरीक़ा हमने अपनाया है वह लोकतांत्रिक और प्रत्यक्ष साधनों से अन्याय और शोषण का विरोध करना है।

हम किसी ऐसे रहस्य पूर्ण समूह से संबंंध नहीं रखते चाहे उसका संबंध देश के अंदर से हो या बाहर से। इसके अतिरिक्त, भारतीय मुसलमान ऐसे समूहों से सहायता क्यों मांगेंगे जब कि अभी तक उनके बारे में कोर्इ स्पष्ट और सही जानकारी नहीं मिली हैं ? भारतीय मुसलमान लोकतांत्रिक ढ़ंग से ज़मीनी सच्चार्इयों को सामने रखते हुए अपनी गतिविधियों को संगठित करने कि योग्यता रखते हैं। इस धरती की ताकत हमारे लिए काफी है। किसी विदेशी संगठन ने हमारे अपनाने योग्य कोर्इ आदर्श स्थापित नहीं किया है।

प्रश्न : यधपि ऐसे छिट पुट मामले सामने आए हैं कि कुछ नौजवानों के बारे में रिपोर्ट है कि हमारे देश में वह ऐसे समूहों की तरफ आकर्शित हुए हैं। हम ऐसे रुझान को कैसे रोक सकते हैं ? क्या आप के पास कोर्इ ऐसा एजेंडा है ?

उत्तर : वास्तव में नौजवान उनकी तरफ उल्लेखनीय संख्या में आकर्शित नहीं हुए हैं। केवल कुछ छुट पुट घटनाओं को प्रस्तुत किया जाता है। इनके मूल कारण हिंदुत्व फासीवादी हमले, सरकारी आतंकवाद, न्याय पालिका से न्याय न मिलना आदि हैं जो नौजवानों को ऐसे रास्ते पर ले जा सकते हैं लेकिन यह अन्याय से लड़ने का सही तरीक़ा नहीं है। ज़मीनी सच्चार्इ यह है कि यहाँ की जनता भ्रष्ट और साम्प्रदायिक राजनीति से संतुष्ट नहीं है। इस दशा को बदलना चाहिए, लेकिन हमारी प्रतिक्रिया वास्तविकता पर आधारित होनी चाहिए। बड़े पैमाने पर जनता को जागृत करने और उसको उचित ढ़ंग से संगठित करने की आवश्यकता है। यह काम अकेले पापुलर फ्र्रण्ट नहीं कर सकता। यह कत्र्तव्य अन्य संगठनों और सामाजिक समूहों को भी अपने ऊपर लेना होगा। सरकार और राजनीतिक नेतृत्व की भी जि़म्मेदारी है। पापुलर फ्र्रण्ट इस संबंध में सजग है और वह अपने हिस्से का कत्र्तव्य प्रभावी ढ़ंग से संपन्न कर रहा है।
प्रश्न : माओ वाद कानून और व्यवस्था की समस्याओं में से एक बड़ी समस्या है और देश के सामने एक वास्तविक चुनौती है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने के बजाए उन्होंने सशस्त्र विद्रोह का रास्ता अपनाया है। पापुलर फ्र्रण्ट मानवाधिकार संगठनों के मंचों पर उनसे सहानुभूति रखने वालों का सहयोग करते देखा जाता है। इसके स्पष्टीकरण की आवश्यकता है।
उत्तर : हम सही ढ़ंग से नहीं जानते कि माओ वादी कौन हैं ? माओ वाद का आरोप भी अनुचित ढंग से और ग़लत ढंग से उसी तरह लगाया जाता है जिस तरह इस्लामी आतंकवाद के आरोप का प्रयोग किया जाता है। पापुलर फ्र्रण्ट किसी ऐसे समूह से कोर्इ संबंध नहीं रखता जो प्रतिबंधित संगठनों की सूची में आता है। यह सच्चार्इ है, लेकिन पापुलर फ्र्रण्ट ने उन समान विचारधारा वाले समूहों के साथ एक मंच पर भाग लिया है जो हिंदू फासीवाद और मानवाधिकारों के हनन के विरुद्ध आवाज़ उठाते हैं। हमने किसी ऐसे समूह या विचारधारा का समर्थन कभी नहीं किया जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास नहीं रखते और जो सरकार के विरूद्ध हथियार उठाते हैं। पापुलर फ्र्रण्ट जिस समाधान का प्रस्ताव रखता है वह लोकतांत्रिक और संवैधानिक समाधान है।
प्रश्न : पापुलर फ्र्रण्ट की भी एक राजनीति है। क्या आप अपनी राजनीति की सफलता की कोर्इ संभावना देखते हैं ?

उत्तर : पापुलर फ्र्रण्ट अपने उदभव से ही एक राजनीतिक विचारधारा रखता है। यह विचारधारा हिंदुत्व की फासीवादी साम्प्रदायिक शकितयों को विफल करने की विचारधारा है। हम सकारात्मक राजनीति का प्रस्ताव रखते हैं। सत्ता में दलित और पिछड़े वगोर्ं की भी भागीदारी होनी चाहिए। भारतीय मुसलमानों को भारतीय लोकतंत्र में उपलब्ध अवसरों का प्रयोग करके अपना उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त करना चाहिए। यही हमारा संदेश है। हमारी राजनीति का उíेश्य ऐसे भारत का निर्माण है जहाँ हर नागरिक को समान अधिकार प्राप्त हों और प्रत्येक व्यकित भय और भूख से मुक्त हो। हम लगातार इस संदेश को पूरे देश में फैलाते रहेंगे। इस प्रक्रिया मे जनता हमारी विचारधारा को पहिचानेगी और स्वीकार करेगीं। सफलता में देर हो सकती है लेकिन यह अवश्य मिलेगी।


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