Saturday, February 7, 2015

‘पीके’: पाखंड खंडन

सुनील कुमार

‘आजादी के ठीक 50 साल पहले स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि भारत के लोग 50 साल के लिए अपने देवी देवताओं को भूल जाएं।’ - नरेन्द्र मोदी, सिडनी (आस्ट्रेलिया)

दुनिया भर में विचारों, संवेदनाओं को प्रकट करने व विरोधियों को जवाब देने के लिए लेखन, नाटक, गाने इत्यादि कलाओं का इस्तेमाल किया जाता है। पीके फिल्म द्वारा विभिन्न धर्मों के पाखंडियों को जबाब देने की कोशिश की गई है। एक ही भगवान का संतान बताने वाले सभी धार्मिक संगठन अलग-अलग धर्म के ठेकेदार बने बैठे हैं। अपने आप को हिन्दू धर्म के ठेकेदार और राष्ट्र भक्त कहने वाले विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल जैसे उन्मादी संगठन पीके के विरोध में तोड़-फोड़ कर रहे हैं। इनकी ‘रष्ट्र भक्ती’ वैसी ही है जैसे फिल्म में ब्लैक टिकट बेचने वाले बन्देमातरम तो बोलता है लेकिन अपने ही देश की लड़की को कुछ पैसे कम होने पर टिकट नहीं देता है। इनकी देश भक्ति में मुनाफे का पूरा ख्याल रखा जाता है। नरेन्द्र मोदी आस्ट्रेलिया में बोल तो सकते हैं कि देवी-देवताओं को भूल जाओ लेकिन जब उनके बिरादराना संगठन भारत में धर्म के ठेकेदार बनकर तोड़-फोड़ करते हैं तो चुप रहते हैं।


फिल्म में टिकट नहीं मिलने के बाद लड़की (जगत जननी साहनी) अकेलापन महसूस करती है जिसका साथ पाकिस्तानी लड़का सरफराज देता है। इसे विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल जैसे संगठन लव जेहाद कहते हैं। तपस्वी जिस तरह से साहनी के परिवार पर अपना प्रभाव जमा रखा है उसी तरह आसाराम बापू ने पीड़ित लड़की के परिवार वालों पर जमा रखा था। तपस्वी इन्टरनेट आरती, आनलाईन प्रश्न, कोरियर से प्रसाद भेजना इत्यादि करते हैं; उसी तरह आज हमें टीवी चैनलों पर सत्संग, जागरण व सुबह-सुबह समाचार चैनलों पर भी ज्योतिषी बैठे मिल जाते हैं। यहां तक कि कई चैनलों पर बाबा अपनी अंगूठी और ताजिब बेचते नजर आते हैं। तपस्वी की स्टोरी दिखाने पर जिस तरह से तपस्वी के चेलों ने न्यूज चैनल के मालिक पर हमला किया; क्या उसी तरह डेरा सच्चा सौदा पर पत्रकार की हत्या कराने का मामला दर्ज नहीं है? या आसाराम बापू के खिलाफ गवाही देने वालों की हत्या नहीं हुई है? तपस्वी जिस तरह से पीके के रिमोट को शंकर के डमरू का टूटा हुआ अवशेष बताता है और झूठ बोलता है कि वह हिमालय पर्वत में तपस्या कर के लाया है; क्या उसी तरह रामपाल रिमोट कंट्रोल से कुर्सी को संचालित कर चमत्कार नहीं करते थे? तपस्वी के रांग नम्बर के पोल खुलने के बाद फोटो, दवाईयां, अगरबत्ती व तेल बिकना बंद हो जाता है। तपस्वी की तरह क्या रामदेव दुकानदारी नहीं करते हैं? क्या इसी डर से रामदेव पीके फिल्म का विरोध कर रहे हैं कि किसी दिन ऐसा उनके साथ भी हो सकता है? पीके के सवाल उठाने पर तपस्वी जिस तरह से उसे एक धर्म विशेष से जोड़कर उसका नामकरण परवेज खान या पासा कमाल कहता है ठीक उसी तरह से दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके मंे मैंने जब जाना शुरू किया तो हमें सम्प्रदायिक ताकतों द्वारा कहा गया कि तुम्हारा नाम अजहर है। साधु सोने की चेन चमत्कारी रूप में निकाल कर दिखा रहा है और एक व्यक्ति उसको रांग नम्बर बता रहा है; उसी तरह से साई बाबा ने सोने की चेन निकालते हुए पकड़े जाने के बाद से अपने कार्यक्रम में विडियो कैमरा, फोटो कैमरा ले जाने पर पाबंदी लगा दी थी।


पुलिस के ड्रेस मिलते ही उसे फ्री में खाना मिलने लगता है। क्या ऐसा नहीं होता है? दिल्ली में 28 दिसम्बर को जब पुलिस वालों को फ्री की फ्राई मछली नहीं मिली तो 9 माह के बच्चे को कार से कुचल दिया। पीके के रिमोट को चुराकर दिल्ली में बेचा जाता है क्योंकि रिमोट की कीमत अत्यधिक है और देश के छोटे शहरों में बेचने से चोर पकड़ में आ जाता। देश को लूटने वाले नीति निर्माता, माफिया, बड़े ठेकेदार, नौकरशाह क्या दिल्ली में नहीं रहते?


पीके गांधी जी का फोटो इकट्ठा करता है लेकिन उसको पता चलता है कि गांधी के फोटो की कीमत एक ही तरह के कागज पर है और सब बेकार है। क्या यह सही नहीं है कि गांधी की विचारधारा पर चलने वाली पार्टियां उनकी विचारधारा को तिलांजली देकर एक ही तरह के कागज बटोरने के लिए दिन-रात तिकड़म बाजी में लगी हुई है? पीके अपनी रिमोट पाने के लिए मंदिर, गुरूद्वारा, चर्च, मस्जिद सभी जगह जाता है लेकिन उसका रिमोट वापस नहीं मिलता है। भगवान को मानने वालों में श्रद्धा कम, डर ज्यादा होती है। जो जितना डरता है उतना चढ़ावा देता है, उतना ही अधिक झुकता है। क्या धर्म द्वारा लोगों को डराया नहीं जाता है? जब भी कोई सवाल उठाता है तो उसका सत्यानाश हो जाने का डर दिखाया जता है।


पीके फिल्म हमें बताता है कि हमें अपना प्राब्लम एक दूसरे के सहयोग से हल करना चाहिए, भगवान के भरोसे नहीं रहना चाहिए। पीके फिल्म में किसी एक धर्म को ही गलत नहीं बताया गया है, इसमें सभी धर्मों की ढोकोसले बाजी की पोल खोली गई है। यह फिल्म कोई नई बात नहीं दिखा रही है, इससे पहले कबीर, गुरू नानक, महर्षी दयानंद ने भी ऐसे पाखंडियों का खंडन किया है। पीके फिल्म द्वारा बताया जाता है कि हम अलग-अलग रंग के कपड़े पहन कर धार्मिक अंधविश्वास में डूब जाते हैं। हम खाकी, काला, सफेद, केसरिया, लाल, पीला रंग के वस्त्र डाले अहंकार में डूबे हैं कि हम सर्वश्रेष्ठ है, हम देश भक्त हैं और अपनी श्रेष्ठता देशभक्ति दिखाने के लिए मानवता का खून बहा रहे हैं। अगर हम खुद को सर्वश्रेष्ठ और देशभक्त बताते रहे तो इंसान नहीं केवल जूता ही बचेगा।


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