Thursday, February 19, 2015

मोदी = केजरीवाल

दिल्ली विधान सभा चुनाव : मोदी = केजरीवाल
- सुनील कुमार


दिल्ली का चुनाव परिणाम आ चुका है, आप पार्टी की सरकार बन चुकी है। इस चुनाव परिणाम से तीनों पार्टियां (भाजपा, आप, कांग्रेस) खुश हैं और दुखी भी हैं। भाजपा खुश है कि उसका ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा दिल्ली में सफल रहा। आप पार्टी की खुशी है कि उसको 95 प्रतिशत विधायकों के साथ 5साल तक शासन करने को मिल गया। कांग्रेस खुश है कि मोदी के विजय रथ को विराम लग गया। भाजपा दुखी है कि उसको शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी दुखी है कि वह अपना खाता भी नहीं खोल पाई। आप पार्टी इतनी भारी बहुमत से आयी है कि अब अपने वादे पूरे नहीं कर पाने का कोई बहाना भी नहीं बना सकती है। आप को इस तरह बहुमत में आना 8 माह पुरानी मोदी सरकार की याद को ताजा करता है। जिस तरह मोदी को पूर्ण बहुमत की उम्मीद नहीं थी, उसी तरह आप पार्टी को 67 सीट पाने की उम्मीद किसी को नहीं थी। दिल्ली की इस ऐतिहासिक जीत में मोदी सरकार के 8 माह का काम-काज मुख्य रहा है। मोदी ने सुशासन, भ्रष्टाचार, सुरक्षा और रोजगार को लेकर जो सपने दिखाये थे, वो 8 माह में हवा हवाई हो गये। उसकी जगह मोदी की विदेश यात्रा, उनके 10 लाख के सूट, उनका पूंजीपतियों के सामने नतमस्तक होेना आदि ही अखबार में छाये रहे। इसके अलावा पार्टी व सरकार में मोदी व अमित शाह का तानाशाह रवैया भी कुछ हद तक जिम्मेदार रहा।
भ्रष्टाचार
आम आदमी पार्टी की भ्रष्टाचार की राजनीतिक समझ बहुत कमजोर है। केजरीवाल एण्ड कम्पनी के लिए भ्रष्टाचार वही है जो सीधा (डायरेक्ट) घूस लिया जाता है। वो सरकारी कर्मचारी व पुलिस के घूस या कमीश्नखोरी तक को ही भ्रष्टाचार मानते हैं जो कि अप्रत्यक्ष (इनडायरेक्ट) लूट से बहुत कम है। दिल्ली में असंगठित क्षेत्र के 50 लाख ऐसे मजदूर हैं जिनको न्यूनतम वेतन नहीं मिलता है और ना ही किसी प्रकार का श्रम कानून उनके कार्यस्थल पर लागू किया जाता है। इन मजदूरों से न्यूनतम मजदूरी से आधे पर काम करवाया जाता है, जबरिया ओवर टाइम करवाया जाता है और कई जगह तो ओवर टाइम का पैसा भी नहीं दिया जाता है। इस तरह प्रत्येक मजदूर से हर माह 5 से 7 हजार रू. की लूट की जाती है। अगर प्रति मजदूर 6 हजार रू. की लूट मान कर चलें तो 50 लाख मजदूरों से प्रत्येक माह तीन हजार करोड़ की लूट इन कम्पनियों के द्वारा की जाती है। इस भ्रष्टाचार पर केजरीवाल सरकार कुछ नहीं बोलती है।
केजरीवाल घोषणा करते हैं कि जब मैं दिल्ली का 49 दिन के लिये मुख्यमंत्री था तो व्यापारियों पर छापे मारने की पाबंदी लगा दी थी क्योंकि अफसर जाकर घूस लेते थे। लेकिन वे एक भी कर्मचारी को पूरा वेतन नहीं दिला पाये। वे एक भी व्यापारी/फैक्ट्री मालिक पर इस लूट के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं किये। उनके मुख्यमंत्री काल में मुंडका और शाहपुर जाट में आग लगी जिनमें मजदूरों की मौत हुई, वे उन मजदूरों के परिवार वालों को न्याय नहीं दिला पाये।
नीयत
केजरीवाल हमेशा नीयत की बात करते हैं कि नीयत सही होने से सभी काम हो जायेगा। इस नीयत के बल पर वह शेर और बकरी को एक घाट पर पानी पिलाने का सपना दिखाते हैं। मैं आप पार्टी की नीयत जानना चाहता हूं। आप ने अपने घोषणा पत्र में 70 वादे किये हैं लेकिन उनके वादे में यह कहीं नहीं है कि दिल्ली में श्रम कानून लागू करायेंगे। जिन बिजली कम्पनियों की खाते की लूट की जांच करवाना चाहते हैं उनके ठेका मजदूरों को न्यूनतम वेतन तक नहीं मिलता है। ओवर टाईम तो उसमें लागू ही नहीं है। चाहे जितना घंटा काम करंे, कर्मचारियों को फिक्स पैसा ही मिलता है। आप पार्टी के वादे वहां नहीं दिखते हैं तो क्या यह मान लिया जाये कि आप पार्टी की नीयत ठीक नहीं है?
आप पार्टी के वरिष्ठ नेता राजनीतिक विश्लेषक योगेन्द्र यादव ने एक टीवी चैनल पर कहा कि हमारी लड़ाई वर्गीय संघर्ष नहीं है। ऐसा नहीं है कि हम अमीरों से छीन कर गरीबों को देने की बात कर रहे हैं। आप पार्टी चाह रही है कि दिल्ली की सत्ता अमीर और गरीब मिल कर चलायें। यह कैसे संभव है कि बाघ और बकरी साथ-साथ चले, बिना किसी को नुकसान पहुंचाये। अमीर व्यक्ति अमीर तभी तक रहता है जब वह दूसरों के हिस्से को लूटता रहता है। यानी लूटाने वाला कुछ नहीं बोले और लूटने वाले के साथ चले! इससे अधिक लूूटेरों की और क्या सेवा हो सकती है? यह सेवा हो भी क्यों नहीं,आप पार्टी के 67 विधायक में से 41 करोड़पति हैं और हाफ करोड़पतियों (50 लाख रू.से अधिक) की संख्या जोड़ दी जाये तो 48 विधायक हो जायेंगे। (लोकसभा में 82 प्रतिशत सांसद करोड़पति हैं, दिल्ली विधान सभा में 63 प्रतिशत विधायक करोड़पति हैं।)
मोदी केजरीवाल की समानताएं
केन्द्र की मोदी सरकार व दिल्ली की केजरीवाल सरकार में कई समानताएं हैं-
क) मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव में बड़े-बड़े वादे किये, लेकिन सत्ता में आने के बाद कोई भी वादा पूर्ण होता दिखाई नहीं दे रहा है। विधान सभा चुनाव में आप पार्टी ने भी बड़े-बड़े वादे किये हैं।
ख) सुरक्षा, सुशासन, रोजगार व भ्रष्टाचार का अंत दोनों पार्टियों के मुख्य वादे रहे हैं।
ग) दोनों ने मजदूरों के मुद्दें पर कुछ नहीं कहा। ठेकेदारी और निजीकरण के मुद्दों पर दोनों की एक राय है।
घ) दोनों ने अपने को व्यापारी बताया। एक ने कहा कि मैं गुजराती हूं हमारे खून में व्यापार है तो दूसरे ने अपने को तो उस जाति से ही जोड़ दिया। दोनों व्यापारी वर्ग (पूंजीपति वर्ग) की सेवा करना चाहते हैं।
च) दोनों ईश्वरवादी हैं, दोनों को ईश्वर में पूरा भरोसा है। इस तरह के लोग यह मानते हैं कि जो हो रहा है वह तो होना ही है जैसा कि गीता में भी लिखा हुआ है। कर्म किये जाओ, फल की चिंता मत करो। यही उपदेश मोदी और केजरीवाल भी देने की कोशिश करते हैं। इसलिए एक भाग्य की बात करते हैैं तो दूसरा हर बात का जबाब नीयत बता कर देते हैं।
छ) दोनों का टैक्नोलॉजी पर बहुत जोर है, हर चीज को वे टैक्नोलॉजी से जोड़ना चाहते हैं- जैसे कि भारत की सभी जनता के पास कम्प्यूटर और इंटरनेट हो गया है, सभी बहुत अच्छी अंग्रेजी जानते हैं। अभी तक तो ये अपनी पार्टी के वेबसाईट को हिन्दी में नहीं कर पाये हैं। लेकिन भारत की 2 प्रतिशत जनता, जो अंग्रेजी जानती है, के लिए सब कुछ कम्प्यूटर पर लाकर पारदर्शिता बनाने का ढोंग करते हैं।
ज) एक का नारा है ‘सबका साथ, सबका विकास’ तो दूसरा ‘स्वराज’ की बात करते हैं। ‘सबका साथ, सबका विकास’ में मोदी दावा करते हैं कि सभी को साथ लेकर चलना है, संघीय ढांचे को मजबूत बनाना है। जो व्यक्ति पार्टी के लोगों को साथ लेकर नहीं चल पाता, वह देश की जनता को कैसे लेकर चल पायेगा। हम लोग 8 माह के शासन में यह देख रहे हैं। दूसरा ‘स्वराज’ और मोहल्ला कमिटी बनाकर हाशिये पर पड़े लोगों को भी साथ लेने की बात करते हैं। आप पार्टी की मोहल्ला कमिटी में वही लोग शामिल हो रहे हैं जो कि चुनाव के वक्त उनको वोट दिये हैं। जो उनसे पैसे लिये हैं और उनका दारू पीये हैं वही उनके मोहल्ला कमिटी में शामिल होने वाले हैं। इससे हम समझ सकते हैं कि सबका साथ, सबका विकास’ व ‘स्वराज’ का नारा कितना खोखला है।
दिल्ली चुनाव में साम-दाम-दण्ड-भेद का प्रयोग तीनों पार्टियों द्वारा किया गया है। सभी पार्टियांे ने पैसे, साड़ी, दारू बांट कर वोट पाने की कोशिश की है। इससे यही लगता है कि ये उम्मीदवार पैसे समाज सेवा के लिए नहीं, निवेश के तौर पर खर्च करते हैं। सत्ता में आने के बाद खर्च (निवेश) किये गये पैसे को सूद समेत वापस लाने की कोशिश हमेशा से की जाती रही है। सत्ता में जो भी आयंे, वे एक खास वर्ग के लोगों की सेवा ही करंेगे। जिस तरह केन्द्र में मोदी सरकार के आने के बाद जनता की समस्याएं बढ़ी ही हैं, उसी तरह केजरीवाल की सरकार बनने के बाद आम आदमी की हालत दिन प्रति दिन खराब ही होगी।

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