Friday, July 24, 2015

डांगावास हत्याकांड

सुनील कुमार

राजस्थान का नागौर जिला सूखा प्रभावित क्षेत्र है। 2011 की जनगणना के अनुसार नागौर की जनसंख्या 27,75,058 है जिसमें से 22,97,721जनसंख्या गांवों में रहती है। यह जिला जाट (पिछड़ा वर्ग) बहुल है। दूसरे स्थान पर मेघवाल (दलित) आते हैं। इसके अलावा दलित जातियों में चैकीदार, रेगर, खटीक इत्यादि जातियां आती हैं। जाट और दलित के अलावा राजपूत, ब्राह्मण, बुनकर, मारू, बढ़ई, जैन और मुसलमान भी हैं। मुसलमानों को छोड़कर जमीन सभी जातियों के पास थोड़ा बहुत है। जाट, मेघवाल, राजपूत, ब्राह्मण के पास जमीन ज्यादा है। जाट और मेघवाल ही ज्यादा संख्या में नौकरियों में हैं। इस ईलाके में जाति बहुत ही मजबूत है। इस ईलाके में जाने पर जाति जरूर पुछी जाती है। भारत में दलितों के पास जमीन नाममात्र की है लेकिन इस इलाके में दलितों के पास जमीन होना मेरे लिए आश्चर्य का विषय था। मैंने जानकारी इकट्ठा करने के लिए मेघवाल समुदाय के धर्माराम डेवाल से बात कि तो उन्होंने बताया जाट और मेघवाल दोनों राजा के पास बेगार का काम किया करते थे। राजा बलदेवराज मिरदा जब इस ईलाके में घूम रहे थे तो उनके साथ जाट और मेघवाल जाति के लोग थे इसलिए जाट और मेघवाल के पास जमीन ज्यादा है। यह ईलाका सूखा प्रभावित था इसलिए दबंग जातियांे को जमीन को लेकर पहले लालच नहीं थी और जोर-जबरदस्ती से जमीन नहीं छिनी गई।

मेड़ता ब्लाॅक से 2 कि.मी. की दूरी पर डांगावास गांव (जिला नागौर) है। 2011 की जनगणना के अनुसार 1,578 परिवार गांव में रहता है जिनकी जनसंख्या 7,470 है, जिसमें मेघवाल 130, प्रजापति 60-70, हरिजन 150, रेदास 60, सरगरे 20 तथा मुस्लिम 100 घर के करीब हंै। यानी गांव की आधी अबादी जाटों की है और शेष में अन्य जातियों तथा धर्म के लोग हैं। सभी जातियों के पास थोड़ी बहुत जमीन है लेकिन ज्यादातर जमीन जाटों के पास है, उसके बाद मेघवालों के पास। मुस्लिम समुदाय के पास कोई जमीन नहीं है। मेघवाल जाति का पुराना व्यवसाय कपड़ा बुनना रहा है। इस गांव में तीन-चार मंदिर और एक मस्जिद हंै। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र व स्कूल भी इस गांव में हैं। गांव के पास एक बड़ा गऊशाला भी है। इस गांव में हर जाति की अपनी अलग-अलग शमसान भूमि है। जातिगत हैसियत के हिसाब से ही शमसान भूिम का रकवा है और जाटों का शमसान सबसे बड़ा है। इसी गांव में 14 मई 2015 को जमीन के विवाद में 5 दलितों की हत्या (दो मौके पर और तीन अस्पताल में) कर दी गई और 11 लोगों को बुरी तरह से घायल कर दिये गये। कई के दोनों हाथ और दोनों पैर तोड़ दिये गये। इस विवाद में रामपाल गोस्वामी बलि का बकारा बने जिसकी सीने में गोली लगने से मृत्यु हो गई। इस झगड़े का कारण 23 बीघा 5 बिस्वा (एक एकड़़ में 6 बीघा) जमीन था। इस विवादित जमीन पर बस्ताराम तथा उनके दत्तक पुत्र रतनाराम का नाम था जिस पर 1964 से चिमनाराम ने कब्जा कर रखा है। 1964 से पहले यह जमीन मेड़ता के बनिया बेरमल के पास था। बेरमल ने पैसा वापस पाने के लिए बस्ताराम का घर कुर्क करा दिया। बस्ता राम मेघवालों के पंच घिसा राम के माध्यम से चिमनाराम से 1500 रू. लेकर कुर्क सम्पत्ति को वापस लिया। उसमें समझौता हुआ था कि बस्ताराम जब पैसा वापस करेंगे तो जमीन वापस बस्ता राम को मिल जायेगी और इस पैसे पर कोई ब्याज नहीं दिया जायेगा। मेघवाल समाज के धर्माराम डेवाल के अनुसार बस्ताराम ने 1978 में 2100 रू. चिमनाराम को वापस कर दिये थे। बस्ताराम जब अत्यधिक बिमार हो गये तो चिमनाराम को संदेश भेजे कि उनकी जमीन वापस की जाये। चिमनाराम ने 25 हजार रु. की मांग कर दी जिससे की बात नहीं बनी। इस बीच चिमनाराम ने जमीन पर अपना नाम करवाने की लगातार कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। 2011 में मेड़ता कोर्ट से रतनाराम के पक्ष में फैसला आ गया लेकिन चिमनाराम का परिवार उस पर खेती करता रहा। मेघवंशी परिवार अपनी जमीन पर कब्जा करने की लगतार कोशिश करता रहा लेकिन जाट परिवार उनको कब्जा नहीं लेने दे रहा था। मेघवाल के तीन भाईयों के परिवार में करीब 50 सदस्य हंै। इस परिवार से एक नरेन्द्र ग्रेजुएशन कर रहा है और दूसरा गोविन्द बारहवीं के बाद नर्सिंग का कोर्स किया हुआ है।

मेघवाल परिवार कब्जा पाने के लिए जमीन पर एक झुग्गी बना कर रहने लगे। वहीं पर कुछ दिन बाद एक पक्का मकान बना कर परिवार के कुछ और सदस्य वहां आ गये। रतनाराम की विधवा बहु पाप्पुड़ी देवी ज्यादा समय वहां रहा करता थी। पाप्पुड़ी के भाई पोकराम और गणपतराम वहां आकर कभी-कभी रूकते थे जिससे गांव में प्रचार था कि कोई बाहरी व्यक्ति आकर कब्जा किये हुए है। इनके रहने के बावजूद जाट पारिवार ने उस खेत से मिट्टी निकाल कर तलाब की खुदाई शुरू कर दी। इसका मेघवाल परिवार ने प्रतिवाद किया और जाट परिवार को पीछे हटना पड़ा। गांव में अन्य जाट परिवारों द्वारा इसी तरह दलित परिवारों की जमीनों पर अवैध कब्जा है। डंगावास हत्याकाण्ड संघर्ष समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र रिया ने बताया कि डंगावास में भिकाराम मेघवाल की 13 एकड़ जमीन पर हुकुमराम जाट, जो कि नागौर के सांसद सियार चैधरी के साला लगते हैं, का कब्जा है। मेघवाल परिवार द्वारा इस तरह से अपनी खोई जमीन वापस पाते देख गांव में हलचल हुई। गावं वालों ने 10 मई को पंचायत बुलाई जिसमें मेघवाल परिवार की अनुपस्थित में निर्णय लिया गया कि रतनाराम 23 बीघा 5 बीस्वा जमीन पर से कब्जा हटा लंे और चिमनाराम को वापस कर दंे। जब इस बात की जानकारी रतनाराम को लगी तो रामकरण कमेड़िया (सरपंच सुनीता देवी के ससुर) से मुलाकात की और इस फैसले को वापस लेने की बात कही। लेकिन कमेड़िया ने पंचायत का फैसला अंतिम फैसला बताया और जमीन खाली करने की बात कही। रतनाराम ने 11 मई को प्रशासन को इस अनुचित फैसले से अवगत कराया और अपनी जान-माल की सुरक्षा की मांग की। 11 मई को ही गांव वालों ने जिलाधिकारी, एसपी, उपखंड अधिकारी से मिलकर कहा कि रतनाराम का कब्जा वहां से हटा दिया जाये, नहंीं तो वह खुद इन मेघवाल परिवार को हटा देंगे।

14 मई को गांव में दुबारा पंचायत बुलाई गई और करीब 250 लोग ट्रैक्टर, पीकअप और मोटरसाईकिलों से 2.5 किलोमीटर दूर उस जमीन पर जा पहुंचे जहां रतनाराम का परिवार था। उस समय वहां पर रतनाराम के चार रिश्तेदार आये हुए थे (पाप्पुड़ी देवी के भाई पोकराम और गणपत राम,रतनाराम की पुत्री जस्सू और दामाद श्रवन) इनके अलावा रतनाराम, पंचाराम, मुन्नाराम, अर्जुनराम, खेमराम, गणेशराम, किशनराम, बिदामी देवी,शोभा देवी, पाप्पुड़ी देवी, भंवरी देवी, सोनकी देवी घटना स्थल पर मौजूद थे। जाट परिवार के लोग तेजा जी महाराज की जय का नारे लगाते हुए उनके बाड़ (तार और बांस का घेरा) को तोड़ते हुए उनके पक्के मकान और झोपड़े तक पहुंच गये।(तेजा जाटों के एक पूर्वज माने जाते हैं, कहा जाता है कि तेजा जी के नाम लेने से सांप का जहर खत्म हो जाता है।)जाते ही वे लोगों को पीटना शुरू कर दिये। कुछ लोग बचने के लिए छत के ऊपर चढ़ गये। ट्रैक्टर से धक्का मार-मार कर घर को गिरा दिया गया। लोगों को सरिया और डंडों से बुरी तरह पीटा गया। महिला, बुजुर्ग,जवान सभी को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा गया। मार-पीट का यह नंगा नाच 30-45 मिनट तक चलता रहा जिसमें पोकराम और रतनाराम की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। पोकराम की दोनों आंखंे फोड़ दी र्गइं, उनके लिंग को नुकसान पहुंचाया गया। पंचाराम के पैर पर ट्रैक्टर चला दिये गये,दोनों आंखों को फोड़ दिया गया। रतनाराम की पत्नी बिदामी (60 वर्ष) के दोनों हाथों में फ्रैक्चर हुआ, पैर में चोट आई। कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं बचा जिनके दोनों हाथ या दोनों पैर में चोट नहीं आई हो। किसी-किसी का एक पैर और एक हाथ में कई-कई जगह फ्रैक्चर हुआ है। इस हमले में चार मोटरसाईकल और एक ट्रैक्टर को जला दिया गया। हमला करके जब सभी जाट वापस चले गये तो पुलिस घटना स्थल पर आई-जबकि पुलिस को भीड़ को देखते ही मेघवाल परिवार ने सूचना दे दी थी। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ंका फोन सुबह 8 बजे से बंद था। घटना स्थल से थाने की दूरी करीब 6 किलोमीटर होगी और इतनी दूरी तय करने में पुलिस को घंटे से अधिक समय लग गया। पीड़ित परिवार के मुन्नाराम का कहना है कि पुलिस घटना स्थल पर महिलाओं के बिखरे कपड़े देख कर मुस्करा रही थी।

पीड़ित परिवार को लेकर जब पुलिस मेड़ता अस्पताल पहुंची तो जाट परिवारों द्वारा अस्पताल में भी हमला किया गया। गोविन्द को अस्पताल के स्टाफ ने अपने स्टाफ रूम में छुपाकर बचाया। शाम को घायलों को अजेमर जिला अस्पताल में रेफर कर दिया गया जहां पर पंचाराम की उसी दिन मृत्यु हो गई। अस्पताल प्रशासन का रवैया भी दो दिनों तक बहुत असंवेदनशील रहा। गणेशराम, जिसकी उम्र 22 वर्ष थी, के सिर और शरीर पर चोट के काले निशान थे, फिर भी उनको 14 को ही डिस्चार्ज कर दिया। उनका बाद में ईलाज के दौरान ही 28 मई को मृत्यु हो गई। अस्पताल प्रशासन ने ईलाज और आप्रेशन के खर्च के लिए पीड़ित परिवार से पैसा जमा कराने के लिए कहा। खेमराम (45 वर्ष) के दोनों पैरों और एक हाथ में फ्रैक्चर हो गया था जिसके लिए 90 हजार रुपये अस्पताल प्रशासन ने जमा करा लिये थे। राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग के अध्यक्ष पी एल पुनिया के दौरे और राष्ट्रीय खबरों में इस घटना के आने के बाद अस्पताल प्रशासन घायलों के प्रति गंभीर हुआ और जमा किये हुए पैसा को वापस किया। घटना के 9 दिन बाद गणपतराम व 14 दिन बाद गणेशराम की मृत्यु ईलाज के दौरान हुई जो कि अस्पताल की असंवेदनशीलता को दिखाता है। पीड़ितों के अन्दर घटना का इतना खौफ था कि वह एक माह बाद भी गांव लौटना नहीं चाह रहे थे। उनको जबरदस्ती पुलिस के साथ गांव में वापस भेजा गया। मेघवाल मुहल्ले में एक अस्थायी पुलिस चैकी का निर्माण किया गया जिसमें गैर जाट पुलिस वालों को रखा गया है।

28 मई को गणेशराम की मृत्यु के बाद अजमेर में गांव-गांव से प्रगतिशील, वामपंथी और जातिवादी संगठनों के लोग जुटने लगे थे और सरकार को घेरने के लिए तैयार थे। इस आक्रोश को भांपते हुए प्रशासन ने वार्ता के लिए कुछ प्रतिनिधियों को बुलाया और सीबीआई जांच की मांग को मान लिया। साथ में यह भी कहा कि एक महीना के अन्दर विवादित जमीन पर पीड़ित परिवारों को चारदीवारी के साथ कब्जा दिला दिया जायेगा और बाकी मांगों पर चर्चा की जायेगी। इस आश्वासन के साथ लोगों के गुस्से को शांत किया गया। दो जून को गोविन्द व मेघवाल प्रतिनिधियों की मुख्यमंत्री से वार्ता हुई जिसमें मुख्यमंत्री ने पीड़ित परिवार के साथ न्याय करने का भरोसा दिलाया और कहा कि यह दो समुदाय की बीच का झगड़ा नहीं है, दो परिवारों के बीच का झगड़ा है। गोविन्द ने मुख्यमंत्री से पूछा कि किस परिवार में 250 से 300 लोग होते हैं? अगर इतने लोग हमला करते हैं तो यह दो समुदाय का झगड़ा है।

पीड़ित ही सन्देह के घेरे में

दो माह बाद तक पीड़ित परिवार को राज्य सरकार की तरफ से कोई मुआवाज नहीं दिया गया है। अनुसुचित जन जाति आयोग की तरफ से मृतक परिवारों को 5,62,500 रू. तथा घायलों को 90,000 रू दिये गये हैं। मृत रामपाल गोस्वामी के परिवार को दो लाख रू दिया गया है। रामपाल गोस्वामी के मर्डर में मेघवाल परिवार पर केस किया गया है जिसमें गोविन्द और नरेन्द्र नामजद हैं।(रामपाल गोस्वामी मंडी में काम करते थे और उनके छोटे-छोटे तीन बच्चे हैं।) गोविन्द ने बताया कि सी.बी.आई. गोविन्द और नरेन्द्र से दस्तख्त कराकर ले गई है नार्को टेस्ट कराने के लिए। मेघवाल परिवार के घर पर लोकल इन्टेलिजेंस का पहरा लगा दिया गया है। किसी भी बाहरी व्यक्ति के जाने पर एक व्यक्ति प्रेस का फोटोग्राफर बन कर आता है और नाम, जगह पूछ कर चला जाता है। उससे पूछने पर अपने आप को राजस्थान पत्रिका का संवाददाता बताया। इससे आगे और कुछ पूछा जाता वह अपनी मोटरसाईकिल से नौ दो ग्यारह हो गया। इस तरह पीड़ित परिवार को ही सरकार द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है। पीड़ित लोगों द्वारा 48 लोगों के नामों की लिस्ट दी गई है और 250 को अनाम हमलावर बताया गया है जिसमें अभी तक 6 की ही गिरफ्तार हुई है। रतनराम की जमीन पर यथास्थिति (स्थानीय भाषा में कुर्क) की स्थिति रखी गयी है। दो माह बाद भी उस जमीन पर पीड़ित परिवार का कब्जा नहीं मिल पाया है।

पीड़ित परिवार से दो-चार लोगों के अलावा और कोई डर से बात नहीं कर रहा है। घायल लोग अपने आप नित्य क्रिया-कर्म की स्थिति में भी नहीं है। एक व्यक्ति के नित्य क्रिया-कर्म में तीन से चार लोग लगते हैं। खेती के समय अपना काम छोड़कर रिश्तेदार इन कामों में सहायता कर रहे हैं। इनको खेती भी अपने से करना मुश्किल हो गया है। परिवारों में इतना भय है कि वह अपने बच्चों को अजमेर में रखना चाहते हैं ताकि वे सुरक्षित रह पायें। हमलावर लोग आज भी उनके दरवाजों के सामने से आते-जाते हैं जिनके कारण इन परिवारों में भय है और वे चाहते हैं कि अस्थायी पुलिस चैकी को स्थायी रूप से वहां रहने दिया जाये।

जमीन का मुद्दा भारत वर्ष में शोषित-पीड़ित वर्ग के लिए ही एक बड़ा मुद्दा है लेकिन उस ईलाके में आने वाले समय में इस तरह की घटनायें बढ़ने वाली हैं। यह लड़ाई जमीन की मालिकाना हक की लड़ाई है जिसमें मेघवाल ही नहीं और भी जातियों की जमीन दबंग लोगों द्वारा कब्जाई गई हैं। इन क्षेत्रों में गऊशाला और मंदिरों के लिए बहुत से सामूहिक जमीन हैं जिन पर जाटों ने कब्जा कर रखा है। डांगावास के नजदीक ही 500बीघा मंदिर के जमीन पर एक जाट परिवार का कब्जा है। इस तरह जमीन का यह झगड़ा वर्गीय झगड़ा है- एक तरफ वे लोग एकजुट हैं जिनके पास जमीन है और दूसरे तरफ जातियों व धर्मों में बंटे हुए वे लोग हैं जिनके पास जमीन नहीं है या उनके जमीन पर किसी और का कब्जा है। यह दो समुदाय या दो परिवारों का झगड़ा नहीं है, यह जमीन पर मालिकाना मुद्दे का मामला है जो कि पीड़ित लोगों को मिलकर लड़ना होगा। इस झगड़े में जातिवादी संगठन भी अपनी रोटी सेंकने में लगे हुये हैं। डांगावास में ही करीब 400 घर दलितों की होगी लेकिन जातिवादी संगठन मेघवाल समुदाय की ही गिनती कर रहे हैं और उन परिवारों को एकजुट करने की कोशिश नहीं कर रहे हैं जिनकी जमीन दबंगों द्वारा जोती जा रही है। इन कारणों से गांव में पीड़ित परिवार खुद को ही अकेला महसूस कर रहा है और दबंगों की डर से, मेघवाल या दूसरी जाति के लोग पीड़ित परिवार से बात नहीं कर रहे हैं। शासक वर्ग भी अपने फायदे के लिए जातिवाद, धर्मवाद को बढ़ावा दे रहे हैंै। यही कारण है कि पुलिस को जाति के नाम पर बांट कर डांगावास भेजा गया है। राजस्थान सरकार ने डांगावास के दोषी पुलिसकर्मियों को स्थानांतरित करके अपनी इतिश्री कर ली है। वह पीड़ित परिवारों के मुआवजे और जमीन पर कब्जे दिलाने के नाम पर चुप है।

No comments: