Wednesday, November 30, 2016

रेवाड़ा बास में मुसलमानों पर हुये हमले की जाँच रिपोर्ट

अलवर जिला का नौगांव थाना क्षेत्र के रघुनाथगढ़ ग्राम पंचायत में खरका बास, रेवाड़ा बास, खैराती बास, बड़ा बास, तैलिया बास, किला माद्री, हाजी बास जैसे 12 बास हैं। इन 12 बास में अरावली पर्वत की गोद में बसा एक रेवाड़ा का बास है जो रघुनाथगढ़ ग्राम पंचायत का अंतिम गांव है। इसके बाद जंगल और अरावली की पर्वत श्रृंखला शुरू होती है। यहां पर अरावली पर्वतमाला राजस्थान और हरियाणा को विभाजित करता है। यह गांव राजस्थान प्रदेश के हिस्से में है लेकिन हरियाणा का मेवात कल्चर यहां का अभिन्न अंग है। गैर अधिकारिक तौर पर आमजन इसे मेवात ईलाके का हिस्सा मानते हैं। 15-16 सितम्बर, 2016 को अचानक रघुनाथगढ़ ग्राम पंचायत सुर्खियों में आ गया। 15 सितम्बर को समाचार चैनलों में समाचार आने लगे कि रेवाड़ा बास के जंगलों में 36 गायों के अवशेष मिले हैं। 16 सितम्बर को यह खबर समाचार पत्रों की सुर्खियां बन गईं। इस खबर को पढ़-सुनकर हमारा एक तथ्य अन्वेषण दल रेवाड़ा बास पहुंचा।

रेवाड़ा बास में साठ-सत्तर घर हैं। जब यह टीम रेवाड़ा बास पहुंची तो गांव में सन्नाटे का माहौल था। लोगों के चेहरे पर उदासी और खौफ का मंजर साफ दिख रहा था। गांव में कच्चे-पक्के छोटे-छोटे घर हैं। पीने के पानी के साधन के रूप में नल, कुंआ, बोर (बोरिंग) हैं। गांव में दो कमरों का एक प्राइमरी स्कूल है जिसमें दो टीचर हैं। शिक्षा का स्तर निम्न है। रेवाड़ा बास में एक भी सरकारी नौकरी वाला व्यक्ति नहीं है। आजीविका के मुख्य साधन खेती, पशुपालन और मजदूरी हैं। गांव में ड्राइवर की नौकरी करने वाले लोग भी हैं। जब रेवाड़ा बास वासियों को पता चला कि जांच टीम आई हुई है तो वे लोग इधर-उधर से भाग कर जांच दल के करीब पहुंचने लगे। उन लोगों ने अपने ऊपर हुई जुल्म की कहानी सुनाना शुरू किया तो लगा कि आज भी हम किसी लोकतांत्रिक देश के वासी नहीं हैं। उनकी कहानी सुन कर लगा कि भारत का जो कानून कहता है, ठीक उससे उल्ट हो रहा है। कानून यह कहता है कि सौ दोषी छूट जायें लेकिन एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिये, लेकिन ठीक उससे उल्ट एक-दो दोषियों को बचाने के लिए पूरे गांव के ऊपर जुल्म किया गया। इस गांव वालों पर हुये जुल्म को देखकर ऐसा लगता है कि भारत में शासन-प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं है। भारत किसी संविधान या कानून की तहत नहीं, कुछ लोगों एवं दलों के हुक्म से चल रहा है।

हमारे देश में अलग-अलग धर्मों के अलग-अलग त्यौहार होता है। अपने धर्म और मान्यताओं के अनुसार हम अपना त्यौहार मनाते हैं। इस्लाम में ईद और बकरीद बड़ा त्यौहार होता है जिस दिन भारत सरकार औपचारिक रूप से छुट्टी रखती है। इस्लाम धर्म के मानने वालों के लिये इन त्यौहारों का बेसब्री से इंतजार होता है। नये-नये कपड़े, सेवईयां, गोश्त इन त्यौहारों की पहचान होती है। रेवाड़ा बास में भी इस बकरीद की खुशी थी। लोग एक दूसरे को मुबारकबाद दे रहे थे। बच्चे ईद की खुशीयां में मस्त थे, पूरे दिन गांव में चहल-पहल थी। खुशियां दूसरे दिन भी चल रही थी। बहन बेटियां अपने परिवार से मिलने आई हुई थीं, नाते-रिश्तेदार भी इस खुशी में शरीक हो रहे थे। लेकिन उसी दिन 14 सितम्बर, 2016 की रात को गाय काटने वालों की तलाशी के नाम पर आस-पास के कई गांवों में दबीश दी गई और 12 लोगों को गाय काटने के इल्जाम में गिरफ्तार कर 19 सितम्बर तक पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया, जो अब जेल में हैं। गिरफ्तार व्यक्तियों में नूरा उर्फ नेर मोहम्मद (पूर्व सरपंच) पुत्र भोंदू, निवासी खड़का बास, शौकत पुत्र अयूब, हकमुद्दीन पुत्र नसीब, खुर्शीद पुत्र ममरेज और इरफान पुत्र नसीब निवासी सभी खैराती बास, जावेद पुत्र याकूब और राशिद पुत्र याकूब निवासी बड़ा बास, फकरूद्दीन पुत्र मम्मन निवासी तैलिया बास, आमीन पुत्र फजरू, निवासी रघुनाथगढ़, साजिद पुत्र मजीद, शीतल का बास, अल्ताफ पुत्र आजाद एवं शौकीन पुत्र इलियास, निवासी पाट खोरी, हरियाणा के रहने वाले हैं। गांव वालों का कहना है कि नूरा उर्फ नेर मोहम्मद (60 साल) को 15 तारीख को सुबह 4 बजे उनके घर से पुलिस लेकर गई। साजिद (24 साल) अपनी पत्नी को लेने आया हुआ था, गिरफ्तार व्यक्तियों में बड़ा बास का 16 साल का विक्लांग लड़का भी है। कुछ लोग दूसरे जगह से बकरीद की मुबारकबाद देने रिश्तेदारों के पास आये थे तो पुलिस ने रात में सोते वक्त उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया।

पुलिस ने दूसरे दिन 15 सितम्बर को क्यूआरटी उपाधीक्षक परमाल सिंह गुर्जर के नेतृत्व में 150 अधिकारी व जवानों के साथ रेवाड़ा बास में दबिश दी। गांव वालों ने बताया कि पुलिस जवानों के साथ विधायक ज्ञानदेव आहूजा (यह वही विधायक है जिन्होंने जे एन यू आंदोलन के समय कंडोम और बड़ी, छोटी हड्डियों की संख्या बताई थी ) के साथ शिवसेना और हिन्दू संगठन के पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता 200-250 की संख्या में रेवाड़ा बास पहुंचे। विधायक ज्ञानदेव आहूजा के स्पष्टीकरण से भी यह बात प्रमाणित होता है कि गांव में शिव सेना, हिन्दू संगठन के कार्यकर्ता पहुंचे थे। लोगों ने बताया कि आहूजा के साथ आये लोगो ने घरों में तोड़-फोड़ की। उन्होंने यह भी बताया कि ज्ञानदेव आहूजा के साथ आये लोग पीले गमछे गले मे डाले हुये थे। कुछ के हाथ में सरिया, डंडे और हथियार भी थे। उन लोगों ने पुलिस वालों के साथ मिलकर घरों में तोड़-फोड़ और लूट-पाट की। गांव की महिलाओं ने बताया कि ये पीले गमछे बांधे हुए लोग कह रहे थे कि गांव वालों के घरो को आग लगा दो, कोई भी बचने नहीं पाये।

जांच टीम ने पाया कि रेवाड़ा बास के सभी घरों में तोड़-फोड़ की गई है। घरों में जो भी सामान थे उसको नुकसान पहुंचाया गया है। यहां तक कि घरों के दरवाजे, खड़िया, चरपाई को तोड़ दिये गये हैं जिस चरपाई को नहीं तोड़ पाये हैं उनके रस्सी को काट दिया गया है। अनाज रखने वाले ट्रंक को कुल्हाड़ी या नुकीली चीजों से नुकसान पहुंचाया गया है। फ्रिज, पंखे, अलमारी, टीवी को तोड़ डाला गया है। खाने व पीने के बर्तन तोड़ दिये गए। यहां तक कि पशुओं की चारा काटने वाली मशीन को भी तोड़ दिया गया है, बोरवेल को तोड़ कर उसके अंदर ईंट पत्थर भर दिया गया है, अनाजों को मिक्स कर दिया गया है। जिन घरों में नई शादी हुई है उन घरों के समान को और ज्यादा तितर-बितर कर तलाशी ली गई है। गांव में करीब 4 घन्टे तक उत्पात मचाया गया है। कई लोगों ने बताया कि उनके घरों में रखे हुए जेवर और नकदी को लूट लिया गया। हमलावर अपने साथ पांच दुपहिया वाहन और अनीस नामक व्यक्ति का एक मिनी ट्रक भी उठाकर ले गई। जो लोग अपने मकानों पर ताला लगाकर भाग गए थे, इन हमलावरों ने वह ताले तोड़ दिये और जहां ताले तोड़ने में नाकाम रहे वहां दरवाजों को तोड़कर कमरे के अंदर घुस गये। हमलावरों ने गांव वालों के जानवर खोल दिये और दो बकरियों को मार दिया। यहां तक कि विक्लांग अफसाना (18 साल) जो कि भाग नहीं सकती थी, चरपाई पर लेटी हुई थी उसे पुलिस वालों ने सिर्फ इसलिए मारा और मुंह में डंडा दे दिया कि वह डर कर भागी क्यों नहीं।

गांव की सरहद पर पहला मकान उस्मान नाम के व्यक्ति का है। उस्मान की पत्नी शरीफन ने बताया कि उनके पति पलवल के पास रहकर मजदूरी करते हैं, आज ही बाहर से आये हुये हैं। उनकी दो बेटे और सात बेटियां हैं। शरीफन घर के आंगन में ही किराने की एक छोटी सी दुकान चला कर गुजारा करती हैं। शरीफन बताती हैं कि ‘‘रात में पुलिस ने आकर तोड़-फोड़ की फिर दूसरे दिन मुंछन वाली आये और पब्लिक आई- कहने लगी आग लगा दियो। वह बताती हैं कि पांच लाख का नुकसान हुआ है- आठ तोला सोना, दो किलो चांदी और दो भैंस खोल कर छोड़ दिये अभी तक मिली नहीं हैं दुकान में रखी चीजों को तोड़ दिया, घर का फ्रीज और समान तोड़ दिये। बोर को तोड़ दिया और पत्थर डाल दिया। बोर से खेती-बाड़ी, पशु के लिये पानी, पीने का पानी होता था। बोर लगाने में दो लाख रू. लग जाते हैं।’’

जैसे-जैसे हमारी जांच टीम गांव में आगे बढ़ रही थी तबाही का खौफनाक मन्जर हमें देखने को मिल रहा था। हर घर में तोड़-फोड़ के बाद बिखरा हुआ सामान अपनी कहानी खुद बयॉं कर रहा था।

गांव के युसुफ खेती का काम करते हैं, उनके पास 10-12 बीघा खेती की जमीन है। युसुफ ने बताया कि ‘‘12-1 बजे का समय था....... बजरंग दल वाले, शिव सेना वाले आये। उनके साथ कोबरा (काली वर्दी में पुलिस वाले को कोबरा वाले बता रहे थे) वाले थे और रामगढ़ का हमारा एमएलए साहब ज्ञानदेव आहूजा थे। मुबारिकपुर और नौगांवा से भी हिन्दू लोग आये- बोलेरो, शिफ्ट गाड़ी में 500-600 लोग आये। हम दूर से खड़े होकर देख रहे थे। पीली वर्दी पहने पांच बस से आये, हम यहां आते तो हमको भी मार देते। बकरियों को लाठी से मार रहे थे जिससे कई बकरियां मर गईं। पशुओं को रखने वाले था उसको गिरा दिया। अनाज तक नहीं छोड़ा, अनाज भी ले गया। कई घरों में खाना तक नहीं बना।’’

मोहम्मद इस्लाम के मकान में भीड़ ने सभी चारपाईयों को निशाना बनाया। घर में रखे खाने के बर्तन, चुल्हे और मटके फोड़ दिये गए कमरे में सालभर खाने के लिये रखे गए गेंहू की कोठियों पर कुल्हाड़ी से कई वार किये गए जिसके निशान हमारी जांच टीम ने देखे। इस्लाम की पत्नी जमीला के दो लड़के और एक लड़की हैं। एक हसली (गले का जेवर) दो तोला के, दुना (गले का जेवर) एक तोला के लेकर गये। जमीला बताती हैं कि ‘‘वह अब बाहर ही रहती हैं, डर से कि कोई मारने आ सकता है....... किसी के आने पर ही घर को आती है।’’

हारून उम्र 36 साल, गांव में खेती करते हैं। वह बताते हैं कि ‘‘गांव के सारे लोग किसान हैं, एक भी सरकारी नौकरी में नहीं है। जिसका नुकसान हुआ है, नजायज है। उस दिन के बाद पुलिस गांव में नहीं आई है। इस बास से किसी को गिरफ्तार नहीं किया है, अलग-अलग बास से गिरफ्तारी हुई है।

जुबेर, गफ्फार, व लियाकत तीनों भाई हैं। गांव के सबसे अंतिम छोर पर इनका घर हैं। जुबेर की पत्नी हसीना बताती हैं कि ‘‘जब दिन में पुलिस वाले आये तो वह खेत में बाजरा काट रही थी। घर पर उनकी बूढ़ी सास थी। पुलिस देखकर वह भागने लगी, कुछ दूर भागने के बाद वह खेत में गिर गई। वह बताती है कि घर के उनके दरवाजे, खुटी, बिजली के बोर्ड, सब तोड़ दिये। उनके घर के बर्तन भी तोड़ गये।’’ घर के ट्रंक को नुकीली वस्तु से छेद कर दिये थे जिसमें वह पुराने कपड़ा लगा-लगा कर अनाज को रखी थी। घर के मशीन, दरवाजे सब टूटे पड़े थे। यहां तक कि उनके पानी रखने के लिये जो घर से बाहर सीमेंट का बनाया हुआ था वह भी तोड़ दिये थे। पशुओं का चारा काटने वाली मशीन को भी तोड़ दिये। उनके घर के सामने का बरामदे टूट कर गिर गया था उनसे पूछने पर कि यह भी पुलिस वालों ने तोड़ा है तो उनका कहना था कि यह अपने-आप पहले ही गिर चुका है। वह घर के अन्दर ले जाकर सब समान दिखा रही थी और बता रही थी कि बच्चों को सोने के लिये खाट भी नहीं है, वह मांग कर खाट लाई है। एक मोटरसाईकिल, आठ तोला सोना और जुबेर का 15 हजार रू., गफ्फार का बीस हजार रू. और लियाकत के दस हजार रू. लेकर गये। लियाकत ने प्याज की खेती करने के लिये 35 हजार रू. ब्याज पर लिया था, जिसमें से 25 हजार रू. खेती में खर्च हो चुका था और दस हजार रू. बचा था। जुबेर ने भैंस बेचकर 15 हजार रू. तथा गफ्फार ट्रक चलाते है तो बकरीद के लिए बीस हजार रू. जो घर में रखा था, उसको पुलिस ले गई।

खालिद की पत्नी तस्लीमा ने हमारी जांच टीम को बताया कि वह हमलावरों के आने पर भागने में नाकाम रही पुलिस और उन्मादी ‘गौ रक्षकों’ ने उसे गन्दी-गन्दी गालियां दी, विरोध करने पर पुलिस ने उसे थप्पड़ मारे। हमलावरों खालिद की मोटर साईकिल को भी अपने साथ ले गये। इसी तरह की कहानी उस्मान की पत्नी बातुनी, शाऊन की पत्नी मुबीना, असीम की पत्नी जुबेदा ने सुनाई। आरिफ की पत्नी साजिदा तोड़-फोड़ के मामले में थोड़ी खुशकिस्मत रही। हमलावरां ने इनके घर में प्रवेश तो किया लेकिन वो सिर्फ जेवर व नकदी लेकर चले गये। घर में मौजूद किसी भी सामान को नहीं तोड़ा। साजिदा हमारी टीम को उसके भाई अली मोहम्मद उर्फ आली के मकान पर ले गई। आली अपनी पत्नी सहित इस हमले के बाद से गांव छोड चुके हैं। साजिदा ने बताया कि उसके भाई की पत्नी ने आठ दिन पहले ही एक बच्चे को जन्म दिया था,उस आठ दिन की मासूम जान और अपनी कमजोर पत्नी के साथ आली ताला लगाकर दूसरे गांव चले गये। हमारी जांच टीम ने खिड़की से जब उसके मकान में देखा तो उसका सारा सामान टूटी हुई हालत में पड़ा था। साजिदा ने बताया कि आली की पत्नी के जेवर भी हमलावरों ने लूट लिया। शमीम और सलीम दोनों अनाथ भाईयों की कुछ समय पूर्व ही शादी हुई थी। उन्मादी हमलावरों ने दोनों भाईयों के घरों को भी अपने गुस्से का निशाना बनाया। शादी में मिला नया गृहस्थी का सामान बुरी तरह से तोड़ दिया गया, जिसमें फ्रिज, आलमारी, पलंग, बर्तन इत्यादि टूटी हुई अवस्था में देखे गए। नई दुल्हन के जेवर भी ब्रिफकेस तोड़कर हमलावर ले गये। गांव के ही अनीस, जो पेशे से ड्राईवर हैं ने हमारी जांच टीम को बताया कि बकरीद होने की वजह से वह अपने मालिक का मिनी ट्रक टाटा 1109 गांव में ही ले आया था। भीड़ ने ट्रक के कांच तोड़कर ट्रक में प्रवेश किया और वह ट्रक को अपने साथ ले गई। हालांकी ट्रक मिल गया है, और पुलिस चैकी में खड़ा है।

उस्मान की पत्नी बातुनी बताती हैं कि जब घर का दरवाजा नहीं खुला तो कुल्हाड़ी से दरवाजा ही तोड़ दिया और 15000 रू. और दो तोला सोना व डेढ़ किलो चांदी ले गए। मुबीना का कच्चा घर है तो दीवार ही गिरा दिये और 20,000 रू. ले गये। उनके शौहर शाहिद बाहर भागे हुये हैं। लली शमीम की शादी को पांच महीने ही हुये थे, उनकी शादी का मिला सारा सामान तोड़ दिया। सामानों में कुल्हाड़ी से ऐसे वार किये गये कि सभी के टुकड़े-टुकड़े हो गए। उनकी बाईक भी उठा ले गए। जुबैदा का शौहर नहीं है। वे मध्याहन भोजन बनाकर अपना गुजारा करती हैं। उनके घर को तो तोड़ा ही, पैसा व जेवर न मिलने पर उसके बर्तन को भी तोड़ दिया।

शबनम को बोला कि तुम गोश्त खाती हो तेरा आदमी कहां है। उसे थप्पड़ मारा तो वह भागी तो उसे खींच लिया और गन्दी-गालियां देनी शुरू कर दी। उसका डेढ़ किलो चांदी व एक तौला सोना लूट कर ले गए। तीन साल के बच्चे फैजान को मारा, उसकी पीठ पर अभी तक घाव के निशान नहीं गए और मन से दहशत भी नहीं गई। हसीना, जिसके 15 दिन का बच्चा था, बहुत विनती की, मुझे छोड़ दो, मेरा शरीर का बच्चा है। फिर भी उसे मारा और घर में रखे 25000 रू. भी ले गये। इस गांव के सभी लोगों की यही कहानी बन चुकी है। लोगों के घर खाना बनाने के लिए बर्तन नहीं है, अनाज नहीं है। सभी लोग शाम होते ही जंगल चले जाते हैं, कुछ लकड़ियां इक्ट्ठा कर वहीं पर कुछ खा-पका लेते हैं और दहशत में सारी रात बिताते हैं।

याद मुहम्मद की उम्र 53 साल है। उनके तीन लड़के ट्रक चलाते हैं और वह खेती करते हैं। उनकी बेटी राहील बकरीद मनाने के लिये आई हुई थी, जिसकी शादी बंदोली में हुई है। उसके दो तोला सोना की हसली ले गये और याद मुहम्मद के घर से डेढ़ किलो चांदी लेकर गये। उनके घर की बर्तन, चरपाई को तोड़ दिया था। वह बताते हैं कि 14 की रात में पुलिस आई थी तो महिलाओं के साथ मार-पीट की जिससे वह भी डर कर भाग गई थी। याद मुहम्मद बताते हैं कि उनका राशन कार्ड भी लेकर चले गये।

17 सितम्बर को शिवसेना, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और भाजपा ने मुबारिकपुर में बंद कराया था जिससे बजार, दुकान बंद रहे तथा मुबारिकपुर में जुमे का नमाज तक अदा नहीं किया गया।

गांव वालों का कहना है कि :

Ø पुलिस की मिलीभगत से दो व्यक्ति- दीनदार उर्फ लंगडा निवासी रेवाड़ा बास और खुर्शीद उर्फ मुल्ला, निवासी बाघौरा थाना किशनगढ़ पुलिस की मिलीभगत से काफी समय से गाय, बछड़े, कटरा काट कर व्यापार करते थे। इसके लिए वे निजामुद्दीन और सुल्तान सिंह नाम के पुलिस वालों को बीस हजार रू. प्रति माह देते थे।

Ø पुलिस को जब गऊकशी की खबर मिली और वह छापेमारी की तैयारी कर रही थी तो यही पुलिस वालों ने फोन कर इन कसाईयों (दीनदार उर्फ लंगडा और खुर्शीद) को भगा दिया।

Ø पकड़े गये सभी लोग निर्दोष हैं, एक भी दोषी को नहीं पकड़ा गया, जब कि पुलिस वाले सही व्यक्ति को जानते हैं।

Ø रेवाडा बास के घरों में खाने-पीने का बर्तन नहीं हैं, घर के सभी सामान तोड़-फोड़ दिये गये हैं और नकदी व जेवरात लूट लिये गये हैं।

गांव वालों की मांग :

Ø बेकसूर लोगों को रिहा किया जाये।

Ø दोषियों को पकड़ा जाये।

Ø लोगों के हुए नुकसान का मुआवजा दिया जाये।

पुलिस का बयान :

नौगावां थाना प्रभारी शिवराम गुर्जर ने बताया कि रेवाड़ा बास में गऊकशी की सूचना बुधवार (14 सितम्बर) को रात ग्यारह बजे मिली। पुलिस दल मौके पर पहुंची तो गऊकशी का कुछ अवशेष मिला। इस पर उच्च अधिकारियों को सूचना देकर जेसीबी से खुदाई कराई गई, जिसमें 36 अवशेष मिले। पुलिस ने मौके से दस लोगों को गिरफ्तार कर 6 गोवंश को मुक्त कराया। मौके से चाकू, तराजू व बाट, केंटरा गाड़ी और चार बाईक भी बरामद किया गया।

विधायक ज्ञान देव आहूजा का बयान :

गुरूवार (15 सितम्बर) को घटना स्थल पर गए सभी कार्यकर्ता अनुशासनिक तरीके से वापस आये। कार्यकर्ता व प्रशासन ने किसी भी घर में कोई तोड़-फोड़ नहीं की। पूर्व जिला प्रमुख खान के समर्थकों ने ही घरों में तोड़-फोड़ कर माहौल खराब करने का प्रयास किया है। मुख्यमंत्री और गृहमंत्री को घटना से अवगत करा दिया गया है।

निष्कर्ष :

Ø रघुनाथगढ़ ग्राम पंचायत मुस्लिम बहुल है।

Ø यह कार्रवाई एक विशेष समुदाय को भयभीत करने के लिये की गई है।

Ø स्थानीय पुलिस की जानकारी में बीफ का कारोबार हो रहा था। जिसके लिये पुलिस को हर माह पैसा दिया जाता था।

Ø आपसी रंजिश के कारण बकरीद में गऊकशी की जानकारी शिवसेना, विश्व हिन्दू परिषद व बजरंग दल जैसे संगठनों को पहुंचाई गई।

Ø स्थानीय पुलिस ने उच्च अधिकारियों के दबाव में बेकसूर लोगों को पकड़कर अपने को पाक-साफ दिखाने की कोशिश की।

Ø घरों में लूट-पाट, तोड़-फोड़ का मकसद लोगों को अधिक से अधिक आर्थिक नुकसान पहुंचा कर उनके मन में भय पैदा करना और उनको पिछड़े बनाये रखना है, जो कि हमेशा एक विशेष सम्प्रदाय और जाति के लोगों के साथ किया जाता रहा है।

Ø घरो में तोड़-फोड़ पुलिस और शिवसेना, बजरंग दल व भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा विधायक ज्ञानदेव आहूजा की मौजूदगी में की गई।

Ø इस घटना से विरोधियों के मन में भय का माहौल पैदा हुआ है।

Ø रेवाड़ा बास में लूट-पाट, तोड़-फोड़ की कार्रवाई से लोगों की माली हालत कई साल पीछे चली गई है।

Ø रेहड़ा बास से गऊकशी की जगह करीब 4 कि.मी. दूर है। रास्ते मे रेत नाले हैं जहां बाईक जा नहीं सकती। पुलिस ने वहां से बाईक कैसे बरामद की? निश्चय ही 15 सितम्बर को यह बाईक गांव से उठाई गई है, जिसका लोगों ने अपनी बातों में जिक्र किया है।

Ø घटना स्थल इतना वीरान है कि पुलिस को वहां जाने के लिये पैदल दो से तीन किलोमीटर चलना पड़ेगा। अगर पुलिस इतनी दूर पैदल चलकर रात में वहां पहुंचती है तो लोग पुलिस को देखकर रूके रहेंगे? पुलिस ने दस लोगों को मौके से कैसे गिरफ्तार कर लिया?





मांगे :

Ø पूरे मामले की न्यायिक जांच कराई जाये।

Ø लोगों को हुए नुकसान का मुआवजा राज्य सरकार द्वारा दिया जाये।

Ø रघुनाथगढ़ ग्राम पंचायत के लोगों की जान-माल की सुरक्षा की जाये।

Ø दोषियों को पकड़ा जाये और गिरफ्तार बेकसूर लोगों पर लगाये गये मुकदमें वापस लिये जायें।

Ø लूट-पाट व तोड़-फोड़ में शामिल लोगों व पुलिस के जवानों, अधिकारियों पर केस दर्ज कराये जायें।

Ø विधायक ज्ञानदेव आहूजा की भूमिका की जांच की जाये।

Ø पैसा लेकर बीफ का कारोबार कराने वाले पुलिसकर्मियोंध्अधिकारियों को गिरफ्तार किया जाये।

सुझाव :

Ø साम्प्रदायिक माहौल को ठीक करने के लिये सद्भावना बैठकें कराई जायें।

Ø लोगों के मन से खौफ निकालने के लिये दोषियों पर कार्रवाई की जाये।

Ø लोगों को कानून के प्रति जागरूक किया जाये।

Ø गोरक्षा के नाम पर मुस्लिमों, दलितों पर हमला करने वाले संगठनों पर उचित कार्रवाई की जाये।

Ø न्यायपालिका व मानवाधिकार आयोग को खुद संज्ञान में इस मामले को लेना चाहिये।

Ø साम्प्रदायिक माहौल फैलाने वाले शक्तियों को अलग-थलग करना चाहिये।



जांच टीम के सदस्य :

अन्सार इन्दौरी, मोहम्मद तल्हा (एन.सी.एच.आर. ओ) सुनील कुमार (स्वतंत्र लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता), अशोक कुमारी (शोद्दार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय),



छत्तीसगढ़ के आदिवासी जनता पर बढ़ता राजकीय दमन

सुनील कुमार
भारत अपने को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहता है और इसी वर्ष भारत ने अपना 67 वां गणतंत्र दिवस मनाया। लोकतंत्र-गणतंत्र पर नेता, मंत्री, अधिकारी बहुत बड़ी-बड़ी बातें करते हैं जो सुनने में बहुत अच्छी लगती है और हमें गर्व महसूस होता है कि हम लोकतांत्रिक देश में जी रहे हैं। यह गर्व और खुशफहमी तभी तक रहती है जब तक हम अपनी स्वतंत्रता और संविधान में दिये हुये अधिकार की बात न करें। 67 वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने कहा कि ‘‘हमारी उत्कृष्ट विरासत लोकतंत्र की संस्थाएं सभी नागरिकों के लिये न्याय, समानता तथा लैंगिक और आर्थिक समता सुनिश्चित करती है।’’ राष्ट्रपति की यह बात क्या भारत जैसे ‘लोकतांत्रिक’, ‘गणतांत्रिक’ देश में लागू होती है? भारत का संविधान अधिकार यहां के प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार देता है कि वह अपनी पसंद से विचारधारा, धर्म, भारत में रहने का जगह, व्यवसाय को चुन सकता है। क्या भारतीय संविधान लागू होने के 67 साल बाद भी यह अधिकार भारत की आम जनता को मिला है? यह हम सभी के लिए यक्ष प्रश्न बना हुआ है। आज भी दलितों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं, आदिवासियों, पर हमले हो रहे हैं। दलितों के आज भी हाथ-पैर काटे जा रहे हैं, रोहित वेमुला जैसे होनहार छात्र को आत्महत्या करने की स्थिति में पहुंचा दिया जाता है। होनहार अल्पसंख्यक नौजवान को आतंकवाद के नाम पर पकड़ कर जेलों में डाल दिया जा रहा है। महिलाओं, यहां तक कि छोटी-छोटी बच्चियों को रोजाना बलात्कार का शिकार होना पड़ रहा है। आईएएस, पीसीएस महिलाओं को भी मंत्रियों और सीनियर के हाथों खुलेआम शर्मिन्दगी उठानी पड़ती है। उन्हें उनके ईशारों पर चलना होता है और ऐसा नहीं होने पर उनको ट्रांसफर से लेकर कई तरह की जिल्लत झेलने पड़ती हैं। इस तरह की खबरें शहरी क्षेत्र में होने के कारण थोड़ी-बहुत मीडिया या सोशल मीडिया में आ जाती हंै।

इस देश के मूलवासी आदिवासी को छत्तीसगढ़ सरकार और भारत सरकार लाखों की संख्या में अर्द्धसैनिक बल भेजकर प्रतिदिन मरवा रही है। उनकी बहु-बेटियों के साथ बलात्कार तो आम बात हो गई है। अर्द्धसैनिक बलों द्वारा उनके घरों के मुर्गे, बकरे, आनाज, खाना और पैसे-गहने लूट कर ले जाना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है। यह सब करने के बाद उनको पुरस्कृत भी किया जाता है, जैसे सोनी सोढी के गुप्तांग में पत्थर डालने वाले अंकित गर्ग को 2013 में राष्ट्रपति द्वारा वीरता पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। छत्त्ीासगढ़ में आदिवासियों पर हो रहे जुल्म की खबरें शायद ही कभी समाचार पत्रों में छपती हैं। थोड़ी-बहुत खबर तब बनती है जब समाज के प्रहरी मानवाधिकार, सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार उस ईलाके में जाकर कुछ खोज-बीन कर पाते हैं। लेकिन यह खबर मीडिया के टीआरपी बढ़ाने के लिये नहीं होती है इसलिए उसे प्रमुखता नहीं दी जाती है। राष्ट्रीय मीडिया में यह खबर तब आती है जब 28 जून, 2012 की रात बीजापुर के सरकिनागुड़ा जैसी घटना होती है जिसमें 17 ग्रामीणों को (इसमें 6 बच्चे थे) मौत की नींद सुला दी जाती है। इस खबर पर रायपुर से लेकर दिल्ली तक यह कह कर खुशियां मनाई जाती है कि बहादुर जवानों को बड़ी सफलता मिली है। ऐसी ही कुछ घटनाएं हाल के दिनों में लगातार हो रही है जो कुछ समाचार पत्रों और मीडिया मंे आ पायी हैं। लेकिन इस तरह की खबरें भी आम जनता तक पहुंच नहीं पातीं।

30 अक्टूबर, 2015 को रष्ट्रीय स्तर की महिलाओं का एक दल जगदलपरु और बीजापुर गया था। इस दल को पता चला कि 19/20 से 24 अक्टूबर, 2015 के बीच बासागुडा थाना अन्तर्गत चिन्न गेल्लूर, पेदा गेल्लूर, गंुडुम और बुड़गी चेरू गांव में सुरक्षा बलों ने जाकर गांव की महिलाओं के साथ यौनिक हिंसा और मारपीट की। पेदा गेल्लूर और चिन्ना गेल्लूर गांव में ही कम से कम 15 औरतें मिलीं, जिनके साथ लैंगिक हिंसा की वारदातें हुई थीं। इनमें से 4 महिलायें जांच दल के साथ बीजापुर आईं और कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक व अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के समक्ष अपना बयान दर्ज कर्राइं। इन महिलाओं में एक 14 साल की बच्ची तथा एक गर्भवती महिला थीं, जिनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। गर्भवती महिला के साथ नदी में ले जाकर कई बार सामूहिक बलात्कार किया गया। महिलाओं के स्तनों को निचोड़ा गया, उनके कपड़े फाड़ दिये गये। जांच दल की टीम ने कई महिलाओं पर चोट के निशान देखे, कई महिलाएं ठीक से चल नहीं पा रही थीं। मारपीट, बलात्कार के अलावा इनके घरों के रुपये-पैसों को लूटा गया, उनके चावल, दाल, सब्जी व जानवरों को खा लिए गये और जो बचा वह साथ में ले गये। घरों में तोड़-फोड़ किया गया और उनके टाॅर्च, चादर, कपड़े भी लूटे गये। यह टीम समय की कमी के कारण सभी गांवों में नहीं जा पाई थी। इन महिलाओं के बयान दर्ज कराने के बावजूद अभी तक किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

इस बीच में काफी फर्जी मुठभेड़ और बलात्कार की घटनाएं हुईं। 15 जनवरी, 2106 को सीडीआरओ (मानवाधिकार संगठनों का समूह) और डब्ल्यूएसएस (यौन हिंसा और राजकीय दमन के खिलाफ महिलाएं) की टीम छत्तीसगढ़ गई थी। इस टीम का अनुभव भी अक्टूबर में गई टीम जैसा ही था। 11 जनवरी, 2016 को सुकमा जिले के कुकानार थाना के अन्तर्गत ग्राम कुन्ना गांव के पहाड़ियों पर ज्वांइट फोर्स (सी.आर.पी.एफ., कोबरा, डीआरजी, एसपीओ) के हजारों जवानों (लोकल भाषा में बाजार भर) ने डेरा डाल रखा था। कुन्ना गांव में पेद्दापारा, कोर्मा गोंदी, खास पारा जैसे दर्जन भर पारा (मोहल्ला) हैं। यह गांव मुख्य सड़क से करीब 15-17 कि.मी. अन्दर है और गांव के लोगों को सड़क तक पहुंचने के लिए 3 घंटे लगते हैं। 12 जनवरी, 2016 को सुरक्षा बलों, एसपीओ और जिला रिजर्व फोर्स के जवानों ने गांव को घेर लिया। पेद्दापार के ऊंगा खेती करते हैं और आंध्रा जाकर ड्राइवर का काम भी करते हैं। फोर्स ने उनके घर का दरवाजा तोड़ दिया, घर में रखे 500 रुपये ले लिये और 10 किलो चावल, 5 किलो दाल और 5 मुर्गे खा लिये। उनकी पत्नी सुकुरी मुसकी के अन्डर गारमेंट जला दिये और उनके घर के दिवाल पर यह लिख दिये -‘‘फोन कर 9589117299 आप का बलाई सतडे कर।’’ ऊंगा का आधार कार्ड भी फोर्स वाले लेकर चले गये। इसी तरह गांव के अन्य घरों में तोड़-फोड़ की। चावल, दाल, सब्जी, मुर्गे, बकरी खाये और मरक्का पोडियामी के घर में लगे केले के पेड़ से केले काट कर ले गये। मुचाकी कोसी, करताम हड़मे, करतामी गंगी, हड़मी पेडियामी, कारतामी कोसी, पोडियामी जोगी व हिड़मे भड़कामी सहित कई महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार व लैंगिक हिंसा किया। महिलाओं ने सोनी सोढी के नेतृत्व में बस्तर संभाग के कमिश्नर के पास शिकायत की। इन महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ और उनके स्तन को निचोड़ा गया। कुंआरी लड़कियां अपने बहनों के मंगलसूत पहन कर अपने को विवाहित बतायी, क्योंकि गांव में 17-18 साल की लड़की अगर शादी-शुदा नहीं है तो उसको माओवादी मान लिया जाता है। इस गांव के 29 लोगों (24 पुरुष, 5 महिला) को पकड़ कर पुलिस ले गई, जिनमें से तीन पर फर्जी केस लगा कर जेल भेज दिया गया। गांव वालों को ले जाते समय रास्ते में बुरी तरह मारा-पीटा गया, महिलाओं के कपड़े फाड़े गये।

कोर्मा गोंदी में 13 जनवरी, 2016 को यही सुरक्षा बल गये और अन्दावेटी का मोबाईल फोन और 500 रुपये छीन लिये। इसी तरह गांव के अन्य लोगों के साथ मारपीट किये और खाद्य सामग्री सहित मुर्गे खा गये। इसी गांव के लालू सोडी (21), पुत्र सोडी लक्कमा को पुलिस ने पकड़ा और बुरी तरह पीटा। इस पिटाई से उसकी 14 जनवरी को मृत्यु हो गई, जिसका एफआईआर दर्ज नहीं हुआ। इसी पारा के योगा सोरी, पुत्र सोरी लक्का को फोर्स के तीन लोगों ने सुबह 9 बजे घर से खींच लिया और उसे गांव से एक किलोमीटर दूर ले जाकर मारा। उसके पैरों में काफी चोट आई, जिससे वह दो दिन तक चल नहीं पाया। इसी पारा के इरम्मा, देवाश्रम और सोमा को 12 जनवरी को पकड़ कर कुकानार थाने ले गये और पांच-पांच पुलिस वालों ने उनके साथ रास्ते में मारपीट की। 15 तारीख को सादे कागज पर हस्ताक्षर लेकर उनको छोड़ दिया गया।

पेद्दापारा से कुछ दूर गोटेकदम गांव के योगिरापारा में फोर्स गई और उसने फायरिंग करना शुरू की। उस समय लोग बांध निर्माण का कार्य कर रहे थे, जो मनरेगा द्वारा 9 लाख रुपये में बन रहा है। फोर्स की फायरिंग की आवाज सुनकर लोग काम छोड़ कर भाग गये। फोर्स ने घरों में घुसकर तलाशी लेनी शुरू की और महिलाओं के साथ छेड़खानी की। घरों में तलाशी के दौरान अरूमा के घर पर एक जवान बोरे (जिसमें समान रखा था) पर लात मार रहा था तो वह फिसल कर गिर गया। उसकी अपनी बंदूक से गोली चल गई जो उसके पैर में लगी और वह घायल हो गया। भीमा की मोटर बाईक से घायल जवान को ईलाज के लिए दो जवान लेकर गये और उसको बाईक वापस नहीं किये। अखबार में सुबह छपा कि माओवादी-पुलिस मुठभेड़ में एक जवान घायल हो गया। पुलिस 14 तारीख तक गांव में रही और तब तक गांव के पुरुष जंगल में भूखे-प्यासे छिपे रहे।

बीजापुर के बासागुडा थाना अन्तर्गत बेलम नेन्द्रा व गोटुम पारा में 12 जनवरी, 2016 को सुरक्षा बल के ज्वांइट फोर्स गांव में तीन दिन तक रूकी रही। इन तीन दिनों में वे गांव के मुर्गे, बकरे को बनाये, खाये या और दारू भी पिये। कराआईती के घर में 7 जगहों पर खाना बनाये और दारू पिये। कराआईती के घर के 40 मुर्गे, 105 कि.ग्रा. चावल, 2 किलो मूंग दाल, बरबटी खाये और दो टीन तेल (एक टीन कोईना का और एक सरसों का) खत्म कर दिये। घर में रखे 10 हजार रू. भी ले गये। कराआईती के घर में खाने के साथ दारू भी पिये, जिसके बोतल आस-पास पड़े हुये थे।

मारवी योगा के घर के 14 मुर्गे, 10 किलो चावल, मूंग दाल, सब्जी और टमाटर खा गये, जिन्हंे वे शनिवार को बाजार से लाये थे। वे अपने साथ बड़े भाई की बेटी को रखते हैं जिसको फोर्स वाले ने गोंडी में कहा कि सभी औरतंे एक साथ रहो, रात में बतायेंगे। यहां तक कि एक घर से काॅपी और पेन भी ले गये। गांव में रूकने के दौरान दर्जनों महिलाओं के साथ बलात्कार और यौनिक शोषण किये। इससे पहले भी 6 जनवरी को सुरक्षा बलों के जवान गये थे। तब उन्होंने मरकमनन्दे को पीटा था, उसकी बकरी ले गये थे और लैंगिक इस हिंसा भी की थी। इस गांव को सलवा जुडूम के समय दो बार जला दिया गया था।

जब ये पीड़ित महिलाएं बीजापुर आयीं तो पुलिस अधीक्षक इनकी शिकायत लेने को तैयार नहीं थे। इनको थाने के अंदर डराया-धमकाया गया। दो-तीन दिन बाद देश भर से जब एसपी-डीएम को फोन गया तो इनकी शिकायत सुनी गई।

राष्ट्रपति की यह बात कि ‘हमारी उत्कृष्ट विरासत लोकतंत्र की संस्थाएं सभी नागरिकों के लिये न्याय, समानता तथा लैंगिक और आर्थिक समता सुनिश्चित करती है’, आम आदमी पर तो लागू नहीं होती है। हां, यह बात जज साहब जैसे लोगों के लिए जरूर है जिनके लिये बकरी पर भी केस दर्ज हो जाता है। राष्ट्रपति इसी सम्बोधन में आगे कहते हैं कि ‘हमारे बीच सन्देहवादी और आलोचक होंगे, हमें शिकायत, मांग, विरोध करते रहना चाहिए -यह भी लोकतंत्र की एक विशेषता है। हमारे लोकतंत्र ने जो हासिल किया है, हमें उसकी भी सरहाना करनी चाहिये।’ भारत सरकार और खासकर छत्तीसगढ़ सरकार पर यह बात लागू नहीं होती है। विनायक सेन को यही सरकार मानवाधिकार के फर्ज अदा करने के जुल्म में जेल में डाल दिया तथा हिमांशु कुमार को सलवा जुडुम में जले हुये गांव को बसाने की सजा उनके आश्रम को तोड़ कर दी। यह वही सरकार है जिसने असामाजिक तत्वों को लेकर ‘सामाजिक एकता मंच’ बनाया और मानवाधिकार कार्यकर्ता, पत्रकार मालनी सुब्रमण्यम के घर पर हमला करवाया। यह वही संगठन है जो बेला भाटिया और सोनी सोढी के खिलाफ प्रदर्शन करता है। इसी प्रदेश में 50 से अधिक पत्रकारों पर अपराधिक मामले दर्ज हैं और चार पत्रकार संतोष यादव व सोमारू नाग जेल में बंद हैं। इन पत्रकारों का गुनाह यह है कि वे अपने पत्रकारिता धर्म को निभाते हुये सही बात कहना चाह रहे थे, अन्य पत्रकारों जैसा पुलिस की कही बातों को सही मान कर रिर्पोटिंग करने वाले नहीं थे। वे उस तरह के पत्रकार नहीं थे जो गोटेकदम में अपनी पिस्तौल से घायल जवान को मुठभेड़ में घायल की खबर छाप देते और उसी जगह दर्जनों महिलाओं के साथ हुई यौनिक हिंसा पर चुप रहते। राष्ट्रपति महोदय ने कहा कि आलोचक और विरोध करने वालों की बात सुनी जा रही है। क्या यह सब घटनायें आप तक नहीं पहुंचतीं? अगर पहुंचती है तो आप चुप क्यों हैं और नहीं पहुंचती तो उसके कारण क्या हैं?

महोदय, आपने ही अपने पिछले सम्बोधन में कहा था कि ‘भ्रष्टाचार तथा राष्ट्रीय संसाधनों की बर्बादी से जनता गुस्से में है।’ बिल्कुल सही फरमाया था आपने। छत्तीसगढ में आदिवासियों को इसलिए मारा जा रहा है कि वे जिस जमीन पर रहते हैं और जिस जंगल को उन्होंने बचा कर रखा है, उसके अन्दर अकूत खनिज सम्पदा है। वह खनिज सम्पदा देशी-विदेशी लूटेरों (पूंजीपतियों) को चाहिए। इसके लिए यह सरकार इन आदिवासियों को हटाना चाहती है और वे हटना नहीं चाहते। वे अपनी जीविका के साधन, मातृभूमि और अपनी संस्कृति की रक्षा कर अपने तरीके से जीना चाहते हैं। आप जिस देश के महामहिम हैं उस देश की सरकार उनको इस तरह जीने देना नहीं चाहती है। वह उनके उपर हमले करवा रही है। सलवा जुडूम के नाम पर 650 गांवों को जला दिया गया, हजारों लोगों को मारा गया, महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। खुले में रहने वाले आदिवासी समाज को यह सरकार कैम्पों (इन कैम्पों का खर्च टाटा और एस्सार ने दिया) में डाल दिया। जो कैम्प में नहीं आये उसको माओवादी घोषित कर दिया। सरकार की नजर में आदिवासी गुलाम हैं, नहीं तो बागी (माओवादी)। इन बागियों के पास बैंक अकाउंट नहीं हैं, न ही इनके पास घर हैं। ये प्रकृति के सहारे जिन्दा रहते हैं। महामहिम जी, आपके ‘बहादुर सुरक्षा बल’ सेटेलाइट और यूएवी (मानवरहित एरियल व्हेकल) के सहारे आधुनिक हथियारों, मोर्टारों, हेलीकाप्टरों से लैस होकर छत्तीसगढ़ जनता पर हमले कर रहंे हैं। निहत्थे महिलाओं, बच्चे-बूढ़े, नौजवानों पर हमले करना उनके साथ यौनिक हिंसा और फर्जी मुठभेड़ में मारना दिनचर्या बन गई है।

सुरक्षा बल सुकुमा जिले के गोमपाड़ गांव की महिला गोमपाड के साथ बलात्कार करता है और अपने कुकर्मों को छिपाने के लिये उसकी हत्या कर देता है। यह इस तरह का फर्जी इनकांउटर था कि कोई भी उस महिला के लाश को देख कर समझ सकता है। सोनी सोढी इस मामले की जानकारी लेने महिला के गांव तक जाना चाहती है तो उन्हें पुलिस और सलवा जुडूम के गुंडों द्वारा रोका जाता है। इस पर न तो देश का सुप्रीम कोर्ट, न राष्ट्रपति भवन और न ही गृह मंत्रालय वहां की वास्तविकता को जानना चाहता है। भारत मां के जयकारे लगा कर उन्माद फैलाने वालों के लिये गोमपाड की मौत कोई मौत नहीं है।

इस तरह के फर्जी गिरफ्तारी और इनकांउटर पर अफसरों को फटकार लगाने वाले सुकमा के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रभाकर ग्वाल को एसपी के शिकायत पर सस्पेंड कर दिया जात है। इस तरह की खबरें बाहर नहीं आ पाये, इसके लिये फैक्ट फाइडिंग (तथ्यपरक खोज) टीम के उपर भी सरकारी दमन किया जा रहा है। अभी हाल ही में जेएनयू और दिल्ली विश्वविद्यालयों से प्रोफेसरों की एक टीम गई थी, जिनको पुलिस ने फर्जी तरीके से फंसाने का प्रयास किया। इस तरह के फर्जीवाड़े का मास्टर माइंड बस्तर रेंज के आईजी एसआरपी कल्लूरी ने सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी है कि इस तरह के लोगों पर खुफिया विभाग द्वारा नजर रखनी चाहिये। कल्लूरी चाहते हैं कि रायपुर के एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड और ट्रेवल एजेंसियों के स्थल पर इस तरह के लोगों की आवाजाही पर नजर रखी जाये।

ये सारे हथकंडे इसलिये अपनाये जा रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में जो अकूत खनिज सम्पदा है उसको लूटा जाये। छत्तीसगढ़ में कोयला 52,533 मिलियन टन, लौह अयस्क 2,731 मिलियन टन, चूना पत्थर 9,038 मिलियन टन, बाक्साईट 148 मिलियन टन, हीरा 13 लाख कैरेट की खनिज सम्पदा है। इसके अलावा और भी खनिज सम्पदा छत्तीसगढ़ में है। इस खनिज सम्पदा को देशी-विदेशी धन पिपाशु लूटना चाहते हैं, जिसके लिये सितम्बर 2009 तक 4 बड़ी कम्पनियों को बिलासपुर, रायपुर, राजानन्दगांव और रायगढ़ में 6,836 हेक्टेअर जमीन देने का निश्चय किया था। टाटा कोे बस्तर में 5.5 मिलियन टन का स्टील प्लांट लागने के लिए 2,044 हेक्टेअर भूमि चाहिए, जिसके लिए 6 जून 2005 में छत्तीसगढ़ सरकार के साथ इकरारनामा हुआ है। इसके अलावा और सैकड़ों इकरारनामें हुये हंै जिसमें छत्तीसगढ की लाखों हेक्टेअर जमीन जानी है। इस लूट को पूरा करने में अमेरिका और इस्राईल जैसे देशों की भी भागीदारी रही है। वे यहां के आदिवासियों को खत्म करने के लिये हथियारों से लेकर ट्रेनिंग तक दे रहे हैं। वे अपने एक्सपर्ट को छत्तीसगढ़ भेजते हैं ताकि आदिवासियों के संघर्ष को समाप्त कर पूंजीवादी-साम्राज्यवादी लूट को बढ़ाया जा सके।

रोज-रोज के फर्जी मुठभेड़ और गिरफ्तारियों से आदिवासियों के लिए अस्तित्व का खतरा पैदा हो गया है। आदिवासी अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संगठित होकर लड़ रहे हैं, चाहे आप इनके संघर्ष को जिस नाम से पुकारें। इस लूट को बनाये रखने के लिये भारत सरकार, छत्तीसगढ सरकार जितना भी फर्जी मुठभेड़ में लोगों को मारे, महिलाओं के साथ बलात्कार करे, शांतिप्रिय-न्यायपसंद लोगों को धमकाये और उन पर हमले कराये, लेकिन वह शांति स्थापित नहीं कर सकती है। राष्ट्रपति जी, आपने पूछा था कि‘शांति प्राप्त करना इतना दूर क्यों है? टकराव का समाप्त करने से अधिक शांति स्थापित करना इतना कठिन क्यों रहा है?’ जब तक मुट्ठी भर धन पिपाशुओं के लिए आम जनता की जीविका के साधन (जल-जंगल-जमीन) छिनते जायेंगे, तब तक यह टकराव रहेगा। जब तक विकास के नाम पर विनाश का खेल चलता रहेगा, तब तक शांति स्थापित नहीं हो सकती है। यही आपके प्रश्नों के उत्तर हैं।



कब तक देश की शोषित-पीड़ित जनता, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिला मुद्दों पर अलग-अलग लड़ती रहेगी? क्या हम सब की लड़ाई एक नहीं है? क्या हमारा साझा दुश्मन सामंतवाद, पूंजीवाद, साम्राज्यवाद नहीं है? क्या हमारी अलग-अलग लड़ाई इन ताकतों के लिए फायदेमंद नहीं है? दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिलाएं, मजदूर, किसान एक होकर लड़ें यही समय का तकाजा है।