Sunday, May 8, 2016

‘प्रधान सेवक’ से नम्बर वन ‘मजदूर’

- सुनील कुमार
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 1 मई, 2916 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में ‘उज्जवला योजना’ की शुरूआत की। भारत के प्रधानमंत्री ‘योजना’ लागू करने और प्रधानमंत्री का उपनाम रखने के मास्टरमाइंड (ऐसे वह बहुत सारे चीजों के वे मास्टरमाडंड हैं) रहे हैं। अभी तक वे दर्जन भर योजना चला चुके हैं जिनमें कई योजनाएं बहु प्रचारित रही हैं। इन योजनाओं के प्रचार में करोड़ों रुपये खर्च किये जा चुके हैं और उसके परिणाम भी हमारे सामने हैं। वैसी हीे एक योजना की शुरूआत एक मई को की गई।

एक मई को पूरे दुनिया में मई दिवस (मजदूरों की मुक्ति का दिन) के रूप में मनाया जाता है। इस दिन दुनिया भर के मिहनतकश हितैषी संगठन/व्यक्ति मिहनतकश जनता के बिच लाल झंडे के साथ जाते हैं और मिहनतकश जनता की मुक्ति, मिहनतकश की सत्ता हासिल करने की बात करते हैं। इसी दिन भारत के ‘प्रधानसेवक’ नरेन्द्र मोदी एलपीजी सिलेण्डर (उसका रंग भी लाल होता है) लेकर बलिया पहुंचे (उत्तर प्रदेश में उनको भी सत्ता हासिल करना है)। उसी दिन हम सभी को पता चला कि भारत के प्रधानमंत्री, जो देश के ‘प्रधान सेवक’ और देश के ‘चौकीदार’ थे दो साल की ‘कड़ी मिहनत’ के बाद देश के नम्बर वन ‘मजदूर’ बन गये हैं। देश के ‘प्रधान सेवक’ की बातों में सच्चाई है, लेकिन वे पूरी सच्चाई नहीं बताये हैं। देश के प्रधानमंत्री, नम्बर वन मजदूर हैं लेकिन जनता के लिये नहीं। देश की आम जनता उनकी परछाई को भी स्पर्श नहीं कर सकती। वे मजदूर हैं बड़े-बड़े धन्नासेठों के लिये, जो देश-दुनिया को लूट कर अपनी तिजोरी भरना चाहते हैं। उसके लिये देश का नम्बर वन मजदूर दिन-रात काम करते हैं, आम जनता के पैसे से विदेशों का भ्रमण करते हैं ताकि इन देशी-विदेशी लूटेरों की लूट को बढ़ा सकें। देश के प्रधानमंत्री जब इन पूंजीपतियों के लिये नम्बर वन मजदूर बन चुके हैं तो इस देश के मजदूर इनके लिये गुलाम बन चुके हैं। मोदी सरकार ने दो साल में जो श्रम विरोधी नीतियां लाई है उससे हाशिये पर जी रहे मजदूरों की हालत गुलामों से भी बदतर हो गई है। मजदूरों के संगठित होने के अधिकारों पर कुठाराघात किया जा रहा है। जब भी मजदूर संगठित होने का प्रयास किया, उनके ऊपर दमन किया गया। हम मारूति, होंडा के मजदूरों पर हो रहे राजकीय उत्पीड़न को भी देख-समझ सकते हैं। हाल के दो-चार वर्षों में ऐसे दर्जनों उत्पीड़न मजदूरों के ऊपर हो चुके हैं, हो रहे हैं।

प्रधानमंत्री कहते हैं कि ‘‘भाइयों-बहनों बोनस का कानून हमारे देश में सालों से है। बोनस का कानून यह था कि दस हजार रू0 से अगर कम आय है और कम्पनी बोनस देना चाहती है तो उसी को मिलेगा। आज के जमाने में 10 हजार रू. की आय कुछ नहीं होती है और उसके कारण अधिकतम श्रमिकों को बोनस नहीं मिलता था। हमने आकर निर्णय किया कि मिनिमम इन्कम 10 हजार से बढ़ाकर 21 हजार रू. कर दी जाए।’’ प्रधानमंत्री जी आप न्यूनतम मजदूरी को ही 21 हजार रू. क्यों नहीं कर देते हैं? मजदूरों को बोनस इसलिए नहीं मिलता है कि उनकी तनख्वाह 10 हजार रू. से अधिक है, बल्कि इसलिए नहीं मिलता है कि मालिक मजदूरों को कम से कम पैसा देता है। उनको बोनस तो दूर की बात है, न्यूनतम मजदूरी 8-9 हजार रू. भी नहीं दी जाती है। अधिकांश मजदूरों को 5-6 हजार रू. प्रति माह पर काम करना पड़ता है। ईएसआई, पीएफ व छुट्टियां तो दूर की बात है उनको सप्ताहिक छुट्टी तक नहीं मिल पाती है। मजदूरों ने लड़ कर जो आठ घंटे काम का अधिकार लिया था उसको छिना जा रहा है, मजदूरों से 10-12 घंटे काम लेना आम बात है। प्रधानमंत्री इन अधिकारों पर चुप क्यों हैं? आप इनको ये अधिकार कब दिलायेंगे? गार्जियानो, निप्पोन, मारूति, होंडा जैसे लाखों मजदूरों को कब तक प्रताडि़त किया जाता रहेगा, कब तक उनको जेलों में रखा जायेगा? क्या यह आपको मालूम नहीं है? आप बताते हैं कि मजदूरों के पीएफ का 27 हजार करोड़ रू. पड़े हुये हैं जिसका कोई सूध लेने वाला नहीं था आपने उसका सूध लिया और मजदूरों के लिये ‘लेबर आइडेन्टि नम्बर’ जारी करने की बात बताये। अब वह 27 हजार करोड़ रू. का मालिक बन सकेगा। आप यह बतायेंगे कि यह 27 हजार करोड़ रू. जिन मजदूरों का है उसको पता लगा कर आप कब तक उसे वापस करेंगे? आपने तो मजदूरों के अपने पैसे निकालने पर पाबंदी और टैक्स लगाने का तुगलकी फारमान सुना दिया था। भारी विरोध के कारण आपको मजबूरी में इस तुगलकी फरमान को वापस लेना पड़ा।

बलिया में भाषण देते हुये आपने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मंगल पाण्डे को याद किया। यह अच्छी बात है, याद करना चाहिये। लेकिन कुछ माह पहले ही उसी मंगल पाण्डे के ईलाके में क्रिकेट मैच की जीत की खुशी में दलित बस्ती को जला दिया गया, जिसको आप ने याद नहीं किया। उन पीडि़तों को यह भी आश्वासन नहीं दे पाये कि आगे से आप का उत्पीड़न नहीं होगा। आप तो बाबा साहेब अम्बेडकर की जयंती मना रहे हैं, बाबा साहेब को उचित सम्मान देने की बात करते हैं। लेकिन बाबा साहेब ने जिन दलितों की आवाज उठाई उन दलित बस्तियों को कुछ माह पूर्व जलाया जाना आप कैसे भूल गये? जबकि 150 साल पुराने मंगल पाण्डे आपको याद रहे।

आप कहते हैं कि हम बलिया में चुनाव अभियान के लिये नहीं आये हैं, हम तो हर राज्य में जाते हैं और वहां से योजना आरंभ करते हैं। सही बात है, अभी आपने फरवरी माह में छत्तीसगढ़ के बस्तर में ‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन’ योजना का शुभारम्भ किया। इस योजना में स्मार्ट गांव का निर्माण किया जायेगा। लेकिन जिस बस्तर में गांव के गांव जला दिये गये उन गांव वालों की आपको याद नहीं आई। उनको आप यह आश्वास्त नहीं कर पाये कि आप अपने गांव में रहिये, आपके घरों को नहीं जालाया जायेगा, आपका जल-जंगल-जमीन सुरक्षित हैं, आपको फर्जी मुठभेड़ों में नहीं मारा जायेगा और ना ही आपको झूठे केसों में डाल कर जेलों में कैद किया जायेगा। आप ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान चलाये हैं लेकिन उनकी बेटियों को यह भी आश्वास्त नहीं कर पाये कि आपके साथ भारतीय अर्द्ध सैनिक बलों द्वारा बलात्कार नहीं किया जायेगा। यहां तक कि आप के छत्तीसगढ़ यात्रा से एक दिन पहले आदिवासी नेत्री सोनी सोरी पर हुये हमले पर कुछ बोलना उचित नहीं समझा। जबकि सोनी सोरी तो आपके ‘बेटी बचाओ’ के मकसद को ही पूरा कर रही थी। वह आदिवासी महिलाओं पर हो रहे हमले और बलात्कार के खिलाफ आवाज़ उठा रही थी। क्या आप इन गांवों, वहां कि महिलाओं को आश्वस्त कर पायेंगे कि आपको उजाड़ा नहीं जायेगा, मारा नहीं जायेगा?

प्रधानमंत्री एक करोड़ दस लाख लोगों द्वारा गैस सब्सिडी छोड़ने पर उनका शुक्रिया आदा करते हुये लोगों से तालियां बजवा रहे थे (जैसे एक मदारी वाला, बच्चों से तालिया बजवाता है कि ताली बजाओ, शोर मचाओ तब खेल दिखायेंगे)। प्रधानमंत्री जी, आप यह बता सकते हैं कि यह एक करोड़ दस लाख कौन-कौन हैं, वे अभी सरकार की कौन-कौन सुविधायें लेते हैं? आप गैस कनेक्शन बांट रहे हैं जिससे महिलाओं की स्वास्थ्य पर बुरा असर नहीं पड़े। लेकिन आप बता सकते हैं कि जिस देश में भूख से मौत होती है उस देश में एलपीजी सिलेण्डर कैसे भराये जायेंगे। आप के दौरे के दो-चार दिन बाद ही यूपी में भूख से मौत हुई। आप यूपी छोड़ दीजिये क्योंकि वहां सपा की सरकार है जो आपकी बात नहीं सुनती है। लेकिन आपके बगल फरिदाबाद में, जहां आपकी ही पार्टी की सरकार है, 4 मई को एक विधवा मां अपनी तीन बेटियों के साथ खुद जहर इसलिये खा ली कि वह रोटी का जुगाड़ नहीं कर पा रही थी। जिस देश में माताएं अपने शरीर को इसलिए बेचती है कि वह अपने बच्चों के लिये दो जून की रोटी जुटा पाये। आप कहते हैं कि यूपी के लोगों ने आपको भारी मतों से जिताया, जिसे आप ब्याज के साथ उनको लौटाना चाहते हैं। आप को यूपी की ही नहीं पूरे देश की जनता ने ही वोट दिया और आप ने उन पर ब्याज भी लगा दिया। जो दाल 80-90 रू. किलो मिल जाती थी उस दाल को आप चुनाव में खर्च किये गये पैसे के ब्याज सहित 200 रू. किलो तक बेचवा दिये। लोगों के खाते में 15 लाख रू. देने, युवाओं को रोजगार देने, महंगाई कम करने जैसे वादों का क्या हुआ? प्रधानमंत्री जी, अब तो आप लोगों की बात मत कीजिये, बहुत हो गया, कितना लोगों की सेवा के नाम पर मेवा खाते रहेंगे। आप ने खुद ही मान लिया है कि आप ‘प्रधान सेवक’ से देश के ‘मजदूर नम्बर वन’ हो गये है। बाकी जनता को आप गुलाम मत बनाइये।